रविवार, 4 सितंबर 2011

ईश्वर, हे ईश्वर

मैंने अपने पिता को
देखा ईमान की मौत मरते
घर से लाश उठी तब
उसूलों का कफन
ओढ़ाया था हमने


ईमान और उसूलों को
जरा सा चख कर देखा मैंने
थू-थू-थू
जहर-जहर-जहर
आदमी मरेगा ही, पक्की बात


पूरी उम्र इतराते रहे बेईमान
पूरियां छनती रहीं
हवेलियां तनती रहीं
और जब मरे
शानो-शौकत से उठा जनाजा
मातम में शहर साथ था


ईश्वर, हे ईश्वर
क्या तू है कहीं
या फिर
एक भ्रम है, सर्वव्याप्त


क्या है तेरे नियम
कौन तुझे प्रिय है
तेरे बताए रास्तों पर
क्यों होती है राहजनी
खुरच-खुरच कर
क्यों मर जाते हैं लोग


तू चाहता क्या है
आखिर चाहता क्या है तू
ईश्वर, हे ईश्वर


सोचता रहा
थोड़ा-थोड़ा बेईमान होता रहा
देखा इक रोज
मुरदा ईमान
भींच रहा था मुट्ठियां
खुद अपने ही खिलाफ
हाथ में पत्थर लिए
खड़ा था मैं
बेईमान थरथरा रहे थे
बदल रही थी दुनिया


-केवलकृष्ण
(फोटो-स्वयं)

3 टिप्‍पणियां:

  1. ये पीड़ा ईमान की है ...आदमी खुद को छल कर भी जाने क्यूं खुश हो लेता है ...

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  2. mera bhi swaal yahi hai ki ईश्वर, हे ईश्वर
    क्या तू है कहीं
    या फिर
    एक भ्रम है, सर्वव्याप्त

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