मर रहा था मैं
जिस वक्त
और कोई नहीं था पास
सिवा तुम्हारे
डूबती जा रही थी चेतना
टूटती जा रही थी सांसे
सिरहाने पर बैठी तुम
खामोश थी, बिलकुल खामोश
न रूदन, न क्रंदन
न एक कतरा आंसू
जानती थी मर रहा हूं मैं
फेर रही थी ऊंगलियां
मेरे बालों में चुपचाप
जाने क्या हुआ
तुम्हारी ऊंगलियों से
निकली तेज रौशनी
आलोकित हो गया तब
पूरा का पूरा ब्रह्मांड
अदभुत प्रकाश वह
अदभुत, अदभुत, अदभुत
झनझना उठा मस्तिष्क
बुझी चेतना
हो उठी प्रज्वलित
जीवन के लिए आतुरता
लेने लगी हिलोरे
सिहर उठा था तब मैं-
अभी तो जीना है मुझे
तुम्हारे साथ
अभी तो जीना है मुझे
तुम्हारे लिए
कविता।
-केवलकृष्ण
जिस वक्त
और कोई नहीं था पास
सिवा तुम्हारे
डूबती जा रही थी चेतना
टूटती जा रही थी सांसे
सिरहाने पर बैठी तुम
खामोश थी, बिलकुल खामोश
न रूदन, न क्रंदन
न एक कतरा आंसू
जानती थी मर रहा हूं मैं
फेर रही थी ऊंगलियां
मेरे बालों में चुपचाप
जाने क्या हुआ
तुम्हारी ऊंगलियों से
निकली तेज रौशनी
आलोकित हो गया तब
पूरा का पूरा ब्रह्मांड
अदभुत प्रकाश वह
अदभुत, अदभुत, अदभुत
झनझना उठा मस्तिष्क
बुझी चेतना
हो उठी प्रज्वलित
जीवन के लिए आतुरता
लेने लगी हिलोरे
सिहर उठा था तब मैं-
अभी तो जीना है मुझे
तुम्हारे साथ
अभी तो जीना है मुझे
तुम्हारे लिए
कविता।
-केवलकृष्ण
आशावादी सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंदुष्यंत कुमार की शायरी में मुहब्बत और ज़िंदगी
बहुत ही अच्छी भावना पूर्ण
जवाब देंहटाएंचेतना का मुस्कराना लाजिमी था ...भला कलम प्रेयसी हो तो उंगली कैसे छुड़ाई जा सकती है ...
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