शनिवार, 27 नवंबर 2010

अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी लगाता है झाड़ू

  राजनांदगांव से एसके बाबा
ओलंपिक जैसे खेलों में पदक विजेता खिलाड़ियों को करोड़ों रुपए का नगद इनाम देने की राज्य सरकार की एक दूरगामी सोच है जबकि वर्तमान में जो खिलाड़ी श्रेष्ठ प्रदर्शन के आधार पर अन्य स्पर्धाओं में पदक जीत रहा है। उसके लिए सरकार के पास फिलहाल कोई योजना नहीं है। खेल में रोजगार एवं आजीविका की कमी की वजह से ही अब खिलाड़ी या तो यहां से पलायन कर रहे हैं या फिर खेल छोड़कर आजीविका के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
नि:शक्तजनों के लिए बनी भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य एवं पूर्व अंतरराष्टÑीय  खिलाड़ी दीपेश कुमार यादव ऐसे ही एक युवक है जो खेल छोड़कर अपने प्रमाण-पत्रों  के दम पर रोजगार की तलाश में परेशान है। काफी मशक्कत के बाद भी जब कुछ काम नहीं मिला तो मजबूरी वश एक निजी संस्थान में वह झाड़ू-पोछा का काम कर घर की जिम्मेदारी संभाल रहा है।
बीएनसी मिल चाल निवासी एवं बहुमूखी प्रतिभा का धनी दीपेश नि:शक्त है एवं आठवीं उत्तीर्ण है। इसकी प्रतिभा का लोहा भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान कपिल देव एवं पाकिस्तान के पूर्व तेज गेंदबाज शोएब अख्तर  भी मान चुके हैं और उपहारस्वरूप अपना आटोग्राफ वाला बल्ला उन्होंने दीपेश को उपहार में दिया है। एशियन खेलों एवं स्पेशल ओलंपिक स्पर्धाओं में दीपेश के नाम कई गोल्ड मेडल है। क्रिकेट  में जहां वह आल राउंडर के भूमिका पर होता है वहीं व्यक्ति खेलों में भी वह चैंपियन है। प्रमाण-पत्रों की लंबी फेहरिशत इस बात का बयां कर रही है। सन् 2004 में गुजरात के अहमदाबाद में आयोजित पहली एशियन पेसिपिक इंटरनेशनल क्रिकेट स्पर्धा में शानदार प्रदर्शन के लिए उसे मैन आॅफ द मैच और मैन आफ सीरीज के साथ दोहरा खिताब मिला।
पहली इंटरनेशनल स्पेशल ओलंपिक क्रिकेट स्पर्धा में भी उसने भारत का प्रतिनिधित्व किया। यह स्पर्धा  मुंबई में हुई थी। गुजरात के बड़ोदा एवं कोरबा के स्पेशल ओलंपिक इंडिया में व्यक्तिगत खेलों की स्पर्धा गोला फेंक, ऊंची कूद, दौड़ आदि में गोल्ड व सिल्वर मेडल जीता था।


इस प्रदर्शन के आधार पर उसका चयन चीन, सिंगापुर व हांगकांग में होने वाली अंतरराष्टÑीय स्पर्धा के लिए हुआ था, लेकिन कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण वह इन स्पर्धाओं में शामिल नहीं हो सका। मंदबुद्धि बच्चों के लिए मुंबई में आयोजित एक प्रदर्शन मैच में फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार की गेंद को स्टेडियम के पार पहुंचाना जहां उसका एक यादगार पल है। वहीं कपिल देव व शोएब अख्तर द्वारा भेंट किए गए बल्ले को वह अब तक का सबसे कीमती उपहार मानता है।
नेशनल लुक से चर्चा करते हुए दीपेश बताता है कि अखाड़ा उसके बचपन का शौक है जिसके बिना, वह खुद को अधूरा मानता है। उसका कहना है कि नि:शक्तों के लिए केंद्र व राज्य सरकार कई योजनाएं बना रही है किन्तु अब तक उन्हें किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। आज हर क्षेत्र में पैसा व पहुंच काम कर रहा है। इसके दम पर कई स्तरहीन खिलाड़ी रोजगार एवं सम्मान पा रहे हैं। गरीब पारिवारिक स्थिति के कारण आजीविका के रोजी-रोटी की तलाश थी। नि:शक्त  होने के कारण कोई अच्छा काम नहीं मिल पा रहा था। मजबूरी में उन्होंने एक निजी संस्था में झाड़ू-पोछा का काम करना पड़ा। दो साल बाद उन्हें यहां पदोन्नति मिली। अब उन्हें चाय-पानी पिलाने का काम सौंपा गया है।
दीपेश का मानना है कि मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह खेल प्रेमी है। वे राज्य ओलंपिक संघ के अध्यक्ष है। उनकी पहल पर ही इन दिनों मिनी ओलंपिक चल रहा है। इस नाते गरीब एवं प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के लिए कोई ठोस पहल की जाए। इस बारे में मुख्यमंत्री से नि:शक्त खिलाड़ियों के लिए पहल की उम्मीद है। उसका कहना है कि खिलाड़ियों को प्रोत्साहन नहीं मिला तो एक दिन उनकी खेल भावना दम तोड़ देगी।
(दैनिक नेशनल लुक से साभार)

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