शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

बहुरने के बाद


अब तो साला
गांव में भी घुस गया है राजनीति।
मालगुजार बांड़ा का अंगना लिपइय्या
बैसाखू का नाती
ले आया है नेवई के डउकी
उसी के बुध में बिसर गया है पुराने दिन
ढेंकी का कोढ़ा रपोट
फूनते थे कनकी
रुपया किलो चाउंर में
मेछरा रहे हैं
हमारी दरोगई करते करते
करने लगा रामलाल भी दाऊगिरी
बांड़ा के सामने ही तान दिया है हवेली
नंगरा साला फटफटी में घूमता है
पंचू का ददा
छेरी चरा कर लौटता था जब भी
रोज अमरता था दतवन काड़ी
कहता था पालगी
अब तो पंचू हो गया है सरपंच-पति
होगा तोप, मूतेगा तो पानी ही
पहले जब गांव घूमता
तब पा लगी, पा लगी कहता था हर कोई
जय हो, जय हो कहता था मैं
क्या पता था
मेरा ही आशीष फल जाएगा
सही में, बरबाद हो गया है गांव
नहीं रहा बनिहार
-केवलकृष्ण

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