जरा इधर भी
बुधवार, 11 जनवरी 2017
अव्यक्त
अदृश्य ही रहेगी खुशबू
अदृश्य ही रहेगी हवा
अव्यक्त ही रहेगा ईश्वर
अनाम ही रहेंगे कुछ रिश्ते
छुपे रहेंगे बहुत से पुण्य
छुपा रहेगा बहुत सारा प्रेम
जंगलों के खूब भीतर
खिले रहेंगे बहुत से फूल
हमेशा
-केवलकृष्ण
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