सोमवार, 19 सितंबर 2011

गुजरात के भूकंप की आंखों-देखी-1

भूकंप से जिंदगी एक बार फिर दहल गई है। वर्ष 2001 में गुजरात में आए भूकंप की कुछ तस्वीरें मैंने पोस्ट की थी। उस दौरान देशबन्धु के संवाददाता के रूप में मैंने जो रिपोर्टिंग की थी, उसकी किस्त प्रस्तुत कर रहा हूं। ये रिपोर्ट आज भी सामयिक है, सिर्फ पात्र बदल गए हैं। प्रस्तुत है-






गुजरात के भूकंप की आंखों-देखी-1

रायपुर, 4 फरवरी 2001 (देशबन्धु)। जब छत्तीसगढ़ में अकाल ने दाने-दाने को मोहताज क दिया तो वे रोटी की तलाश में गुजरात चले गए। बदकिस्मती ने वहां भी पीछा नहीं छोड़ा। गुजरात में आए भूकंप ने एक बार फिर उनकी जिंदगी को झिंझोड़ कर रख दिया। छत्तीसगढ़ के बहुत से मजदूर पेट पर हाथ धरे उदास मन से गुजरात से लौट रहे हैं। लेकिन बहुत से मजदूर ऐसे भी हैं, जो गुजरात में बंधक बना लिए गए हैं। भूकंप के कारण मजदूरों में वहां मची खलबली के मद्देनजर वहां के मालिकों और ठेकेदारों ने उन पर हथियारबंद लोगों के पहरे बिठा रखे हैं। 
अहमदाबाद का रेलवे प्लेटफार्म इन दिनों भीड़ से खचाखच रहता है। गुजरात में बार-बार आ रहे भूकंप के झटकों से वहां दहशत का माहौल है। जिस पर तरह-तरह की वैज्ञानिक-अवैज्ञानिक भविष्यवाणियों ने इस माहौल को और गहरा कर दिया है। वहां हर आंख की पुतली में बरबाद हो चुके शहरों और क्षत-विक्षत , सड़ी-गली लाशों की परछाई साफ देखी जा सकती है। जिसे मौका मिल रहा है, वह भाग रहा है। भुज की सड़कों, अंजार की गलियों में, भचाऊ के चौगड्डे पर बदहवास भागते लोग देखे जा सकते हैं। अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर सहमी-सहमी भीड़ देखी जा सकती है। इन भागने वालों की भीड़ में वे लोग ज्यादा हैं जो दूसरे प्रदेशों से कमाने-खाने गुजरात आए थे। इससे पहले कि वे पेटभर रोटियां जुटा पाते, धरती से मौत की एक लहर उठी और उन्हें छूकर गुजर गई। जिन्हें रोटियों के लाले पड़े थे, उन्हें जिंदगी के लाले पड़ गए। ऐसे ही लोगों में छत्तीसगढ़ के वे मजदूर शामिल हैं, जो यहां अकाल के कारण कमाने-खाने गुजरात चले गए थे। अहमदाबाद और कच्छ इलाके में बिलासपुर और रायपुर के एक हजार से ज्यादा मजदूर ईंट भट्ठों में काम कर रहे थे। भूकंप ने वहां के ईंट भट्ठों को तबाह तो कर ही दिया, साथ ही उन झोपड़ियों को भी नहीं छोड़ा जिन्हें इन मजदूरों ने वहां अपने लिए बनाया था। 
गुजरात में यह पता नहीं चल पाया कि छत्तीसगढ़ से वहां आए मजदूरों को जनहानि हुई है या नहीं। वहां जितने भी मजदूर मिले सभी ने कहा कि उनके परिवार के सभी लोग सुरक्षित हैं। इन मजदूरों का कहना था कि 26 जनवरी को भूकंप का जो बड़ा झटका लगा था उस समय वे काम पर थे और उनका काम खुली जगहों पर चल रहा था। लेकिन उन्होंने उस पहले झटके के दौरान ऊंची-ऊंची इमारतों को ताश के पत्तों के महल की तरह भरभरा कर गिरते देखा था। उन्होंने अपनी झोपड़ियों को क्षणभर में मलबे में बदलते देखा था। ईंट भट्ठों की तबाही देखी थी। इसके बाद भी धरती भयानक तरीके से कांप रही थी। जैसे इतनी तबाही के बाद भी उसका जी नहीं भरा हो। 
सभी की तरह छत्तीसगढ़ के मजदूर भी दहशतजदा थे और हर हाल में छत्तीसगढ़ लौट जाना चाहते थे। अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर 2 फरवरी को छत्तीसगढ़ के ऐसे ही मजदूरों की भारी भीड़ नजर आई। स्टेशन से बाहर भूकंप पीड़ितों के लिए मुस्लिम समाज द्वारा लगाए गए लंगर में अपनी भूख मिटाने छत्तीसगढ़ के कई मजदूरों के कई झूंड नजर आए। इन मजदूरों ने इस संवाददाता को बताया कि उनमें से बहुत से अपना हिसाब पूरा कराए बगैर भाग आए हैं। कुछ ऐसे हैं जिनका हिसाब मालिकों ने किया तो जरूर लेकिन पूरे पैसे नहीं दिए। और बहुत से ऐसे हैं जिनके रिश्तेदारों को मालिकों ने बंधक बना लिया है। 
ग्राम पचपेढ़ी (बिलासपुर) के मनहरन सूर्यवंशी, ग्राम धनगवा (बिलासपुर) के चितराम पाटले, सोनाडीह (रायपुर) के नारायण प्रसाद कोसरिया, धुरवाकारी (रायपुर) के पंचराम राय ने इस संवाददाता को बताया कि वे लोग अपने परिवार के साथ 2 माह पहले गुजरात के ईंटभट्ठों में काम करने आए थे। अहमदाबाद से 22 किलोमीटर दूर सानननगर में वे काम कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भूकंप में मरने से अच्छा है कि अपनी धरती पर भूखों मर जाएं, इसलिए लौट रहे हैं। उन्होंने बताया कि जिस स्थान पर वे काम कर रहे थे वहां पर रह-रहकर झटके आ रहे हैं। वहां की हवा भी अजीब-सी महसूस हो रही है। उन्होंने बताया कि दिमाग में भारीपन और उलझन महसूस कर रहे थे। इसलिए वे भाग आए। उन्होंने बताया कि अटालच नामक स्थल पर बी.के.ब्रिक्स नाम के भट्ठे में बहुत से मजदूर फंसे हुए हैं। इनमें संतन सूर्यवंशी (पचपेढ़ी, बिलासपुर), गपला सूर्यवंशी (पचपेढ़ी), उमेनसिंह सूर्यवंशी (पचपेढ़ी) शामिल हैं। इन मजदूरों के साथ-साथ उनका परिवार भी वहां फंसा हुआ है। उन्होंने बताया कि सानननगर के एक ईंट भट्ठे में 6 परिवार बंधक बनाए गए हैं। इन मजदूरों पर लाठी और फरसा से लैस मालिक के गुंडे नजर रखते हैं। कहते है कि रात के समय यदि किसी ने भागने की कोशिश की तो काट डालेंगे। 
उन्होंने बताया कि सानननगर की इस ईंटभट्ठी में ग्राम टेकारी (बिलासपुर) के धनीराम सतनामी, दीपक सतनामी, लक्ष्मीनारायण दास, राजकुमार सतनामी, जीवनलाल सतनामी, तोपसिंह सतनामी और उनके परिवार के कुल 25 लोग फंसे हुए हैं। इन मजदूरों ने बताया कि उन्हें ग्राम केंवतरा (बिलासपुर) के एक एजेंट फागूराम ने गुजरात भेजा था। साथ में एक और एजेंट था जिसका नाम गंगा था। इन मजदूरों ने वहां जाने से पहले पंचायत में पंजीयन भी नहीं कराया। उन्होंने बताया कि एजेंट ने कहा था कि एक हजार ईंट बनाने के 180 रुपए मिलेंगे, लेकिन वहां 147 रपए का ही रेट बताया गया। इसेक बाद भी पूरा हिसाब नहीं किया गया। फागूराम नाम के इसी एजेंट ने ग्राम केंवतरा के भूषण सूर्यवंशी और उनके परिवार के तीन सदस्यों, बैगा सूर्यवंशी और उनके परिवार के 4 सदस्यों परसदा मस्तूरी के गोरेलाल सूर्यवंशी और श्यामलाल सूर्यवंशी को गुजरात भेजा था। इन लोगों को रेट 150 रुपया बताया गया लेकिन 146 रुपए का रेट थमा कर हकाल दिया गया। 
ये मजदूर गुजरात के तेलभट्ठा में काम कर रहे थे। सभी मजदूर 2 तारीख को छत्तीसगढ आने के लिए अहमदाबाद-पुरी एक्सप्रेस में सवार हुए। भूकंप से सर्वाधिक प्रभावित भुज के निकट स्थित गांधीधाम में ग्राम महोतरा टुंडरा (रायपुर) के मनहरण सतनामी, गणेश सतनामी, रमेश सतनामी, रामनाथ सतनामी, कीर्तिक सतनामी, भोरथीडीह (रायपुर) के कार्तिक सतनामी, बरेली (गिरौदपुरी) के रामरतन सतनामी, भुरवा सतनामी काम कर रहे थे। भूकंप की तबाही में बच जाने के बाद ये सभी लोग छत्तीसगढ़ की ओर भाग रहे थे। 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रपट. छत्तीसगढ़ से कमाने खाने के लिए परदेस जाने की परंपरा बहुत पुरानी है. वहां अकाल/दुकाल हो न हो.

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  2. भूकंप और उसके बाद की त्रासदी और उस पर भी दूर से आे मजदूरों का आपने अच्छा चित्रण किया है आपने

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