बुधवार, 7 सितंबर 2011

करेले जैसी हो तुम प्रिये और करेला मुझे बहुत पसंद है

प्रिये तुम्हारा प्रेम करेले की तरह कड़ुवा हो गया है क्या। हाय, तिवरे की डाली की तरह नाजुक हो। तेल की बघार जैसा तुम्हारा तीखापन हर तरफ छाया हुआ है। ये तो गजब है। इस बघार में मिर्च की झाल है। धनिये की हरी पत्ती हो तुम, सुगंधित और स्वादिष्ट........ऐसे अपारंपरिक बिंबो का चमत्कारी प्रयोग लोकगीतों और लोक साहित्य में बड़े पैमाने पर होता रहा है। एक अज्ञात लोक कवि की कल्पना देखिए उसे अपनी प्रेयसी भाजी और सुकसी मछली की तरह भी नजर आती है। यह रचना पढ़ते पढ़ते वह फिल्मी गीत याद आ गया-इक लड़की को देखा तो ऐसा लगा.....। मैं दोनों गीतों की तुलना में खो गया और किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा।
इस गीत को मेरे मित्र अजीत शर्मा ने फेस बुक पर शेयर किया था, वहीं से कापी कर पेस्ट कर रहा हूं। अजीत भाई के आभार सहित


करेला असन करू होगे का ओ तोर मया
ये सनानना करेला असन करू होगे य मोर मया
करेला असन करू होगे का ओ, करेला असन करू होगे का य मोर मया
ये सनानना करेला असन करू होगे य मोर मया
हाय रे तिवरा के ड़ार , टुरी तेल के बघार
ये गजब लागे वो गजब लागे
ये गजब लागे सँगी , जेमा मिरचा मारे झार
गजब लागे,
ये सनानना करेला असन करू होगे य तोर मया
हाय रे धनिया के पान, मिरी बँगाला मितान
गजब लागे वो , गजब लाबे
ये गजब लागे वो ये गजब लागे
ये गजब लागे सँगी , जेमा मिरी के बरदान
गजब लागे,
ये सनानना करेला असन करू होगे य तोर मया


हाय रे जिल्लो के भाजी, खाय बर डौकी डौका राजी
ये गजब लागे वो गजब लागे
ये गजब लागे सँगी , जेमा सुकसी मारे बाजी
गजब लागे,
ये सनानना करेला असन करू होगे य तोर मया

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