मंगलवार, 6 सितंबर 2011

नाच नहीं नाचा

नाचा क्या है छत्तीसगढ़ के लोग अच्छी तरह जानते हैं। इसकी खूबियों से अच्छी तरह वाकिफ भी हैं। गांवों में अब भी जब नाचा होता है तो भीड़ उमड़ पड़ती है। नाचा पूरी रात चलता है और सूरज उगने के बाद भी थमता नहीं। रात में जुटी भीड़ सुबह तक डटी रहती है। और तो और जब नींद आती है तो बहुत से लोग वहीं पसर भी जाते हैं, नाचा खत्म होने के बाद ही घर जाते हैं। लेकिन जो लोग छत्तीसगढ़ के बाहर हैं उन्हें यह बता दूं कि आम तौर पर नाच को जिस अर्थ में लिया जाता है, नाचा उससे बिलकुल भिन्न है। इसमें मनोरंजन के साथ साथ दर्शन भी होता है। बातों की बातों में कलाकार वर्तमान परिवेश पर करारा व्यंग्य भी कर जाते हैं। यह छत्तीसगढ का पुराना रंगकर्म है जिसका लोहा आधुनिक रंगकर्म भी मानता है। हबीब तनवीर जैसे दिग्गज रंगकर्मियों ने इसी से ताकत बटोरी। उनके ज्यादातर कलाकार नाचा कलाकार ही थी।....लेकिन विकास की बयार अब शहरों से गांवों की ओर बह रही है। विकास की यह आंधी कई परंपरागत कलाओं को ले उड़ी। नाचा भी थपेड़े खा रहा है। मेरा भी बचपन कस्बाई इलाके में बीता है। नाचा मैंने भी देखा है और जब उन दिनों को याद करता हूं तो वह जोक्कर या आ जाता है जो रात भर हंसाता रहा। सिर पर कलश लिए नारी वेश में वे कलाकार याद आ जाते हैं, जो पुकारते थे- ए होssssssss

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