छत्तीसगढ़ के अपने ही रंग है। अभी चारों ओर हरियाली बिखरी पड़ी है। बारिश थमते ही जब त्योहारों का दौर शुरू होगा तो संस्कृति अपने पूरे यौवन में नजर आएगी।देश के दिगर हिस्सों की तरह दीपावली का त्योहार यहां का सबसे बड़ा त्योहार है। राऊत समाज इसे अपने ही अंदाज में मनाता है। वे नाच-गाकर अपनी खुशियां बिखेरते हैं। रायपुर के टाउन हाल में राऊतों का एक ऐसा ही दल मुझे कुछ साल पहले नजर आया। एक कलाकार ने जिस तरह का वेश धर रखा था, उसने मुझे बेहद प्रभावित किया। शायद इसलिए भी कि पहले एक नाटक में मैंने भी लगभग ऐसी ही भूमिका अदा की थी, जिसकी तस्वीर पुरानी पोस्ट में है। मैंने उससे अनुरोध करके उसकी तस्वीर ली। शेयर कर रहा हूं। पसंद आए तो दाद चाहता हूं।
और कुछ पसंद आये न आये मगर आप की लिखी यह दो lines मुझे बेहद पसंद आई हैं.... बारिश थमते ही जब त्योहारों का दौर शुरू होगा तो संस्कृति अपने पूरे यौवन में नजर आएगी। धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..............
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर. अभी तो बारिश थमने का नाम ही नहीं ले रही है.
जवाब देंहटाएंIndeed a great artist with great expressions.
जवाब देंहटाएंछत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता मासूम और हसीन चेहरा.
जवाब देंहटाएंjivant kam kar rahae keval mari badhai
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