गुरुवार, 25 नवंबर 2010

वैचारिक स्वराज से ही आतंकवाद का सामना संभव

  डा. मिश्र और जयप्रकाश को गजानन माधव मुक्तिबोध सम्मान
रिपोर्ट -रविंद्र ठेंगड़ी 
 महाराष्ट्र मंडल ने गुरुवार को वरिष्ठ आलोचक डा. राजेंद्र मिश्र और युवा समालोचक जयप्रकाश को गजानन माधव मुक्तिबोध से सम्मानित किया। इस मौके पर उपस्थित मुख्यअतिथि डा. श्रीपाद भालचंद्र जोशी ने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा आतंक लोगों को विचार शून्य बनाने वाले बाजारवाद से नियंत्रित ‘मीडिया’ है और इससे केवल ‘वैचारिक स्वराज’ से ही निपटा जा सकता है।
रायपुर। महाराष्ट्र के वरिष्ठ साहित्यकार व शिक्षाविद डा. भालचंद्र जोशी ने ‘आतंक का माध्यम व माध्यम का आतंक’ विषय पर अपने सारगर्भित संबोधन में कहा कि इस समय दुनिया में 87 फीसदी मीडिया छह मीडिया समूहों के माध्यम से संचालित हो रहे हैं। यही लोग पूरे विश्व में और भी कई कंपनियां चला रहे हैं और इनके मुनाफे की कल्पना नहीं की जा सकती। इनकी महत्वाकांक्षा असीमित है। ये लोग चाहते हैं कि आमजनों को पूरी तरह वैचारिक रूप से शून्य बनाने के बाद उन्हें केवल अपने ब्रांड की वस्तुओं को खरीदने के लिए विवश किया जाए।
पता ही नहीं चलेगा गुलामी का
उन्होंने कहा कि शस्त्र से होने वाले आतंक का मुकाबला शस्त्र से किया जा सकता है, लेकिन यदि आदमी को इस स्थिति में ही ला दिया जाए कि वह विचार ही न कर सके, या वह वही सोचे, समझे और देखे, तो मीडिया उन्हें दिखाना, समझाना और बताना चाहता है। ऐसी खतरनाक स्थिति में तो उसे पता ही नहीं चलेगा कि वह कब गुलाम हो गया। उन्होंने कहा कि हम माध्यमों में ही विभिन्न प्रकार के आतंक की गहरी समीक्षा देखते हैं और उसके निदान के लिए भी बड़ी-बड़ी बातें सुनते हैं, जबकि जरूरत माध्यम के आतंक का पहचानने, समझने और उससे निबटने पर मंथन होना चाहिए। इस पर कोई माध्यम न तो कोई कार्यक्रम आयोजित करता है और न ही किसी को इस विषय पर बोलने या लिखने की आजादी मिलती है।
अखबारों में सब्सिडी क्यों?
डा. जोशी ने कहा कि आज सब्सिडी हटाने की बात उठती रही है। पेट्रोल, केरोसीन, एलपीजी गैस से लेकर हर अनुदान प्राप्त वस्तुओं से अनुदान हटाने या कम करने की मांग प्रशासनिक स्तर पर उठती रहती है। अर्थशास्त्री भी अनुदान घटाने की ही वकालत करते हैं। ऐसे में अनुदान प्राप्त अखबारों से अनुदान हटाने की बात कोई नहीं करता। यह नहीं कहा जाता कि यदि 38 रुपए का टाइम्स आफ इंडिया है तो उसे उतनी ही कीमत पर पाठकों तक पहुंचना चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि बड़ी मल्टी नेशनल कंपनियां ऐसा नहीं होने देंगी। वे तो पाठकों तक मुफ्त में अखबार पहुंचाने की कोशिश करेंगी और अभी भी लगभग मुफ्त में ही लोगों को अखबार मिल रहा है। दरअसल अखबारों और चैनलों में भी पाठकों-दर्शकों को वही पढ़ाया व दिखाया जा रहा है, जो मल्टी नेशनल कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने के लिए दिखाना चाहती है और लोगों की वैचारिक क्षमता से लेकर उनके परिवार, समाज और राष्ट्र की संरचना को नष्ट-भ्रष्ट करना चाहती है।
मीडिया पर ऐसी शिक्षा कहीं नहीं
डा. जोशी ने कहा कि आज कहीं भी मीडिया का आशय, क्यों, कैसे, किसके लिए, किसके लिए नहीं, औचित्य, आवश्यकता जैसे विषयों पर शिक्षा नहीं दी जाती। इस विषय पर कहीं कोई सामग्री नहीं मिलती। क्योंकि ऐसे विषयों से ही लोगों को वैचारिक रूप से सशक्त होते हैं। जयप्रकाश के संबोधन का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि आज लेखक अपनी पुस्तक प्रकाशित करवाना नहीं चाहता क्योंकि उसकी पुस्तक पढ़ने वाले पाठक ही नहीं है। असल में पाठक तो बहुत है लेकिन एक लेखक को जिस वर्ग के पाठक की जरूरत है, वह अब लगातार सुकुड़ते हुए अति सूक्ष्म हो चुके हैं। अमेरिका में शुरू से ही अवधारणा आ गई थी कि यदि परमाणु हथियार, सैनिक, व्यापारी, राजनीति और प्रशासन एक हो जाए, तो पूरी दुनिया पर राज किया जा सकता है और आज इसी अवधारणा पर पूरी दुनिया पर काम हो रहा है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. सम्‍मान के लिए सार्थक चयन. संस्‍था और सम्‍मान प्राप्‍तकर्ता, बधाई के पात्र हैं.

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