(कभी-कभी बच्चों की बातें और कल्पनाशीलता हैरान कर देती है। मेरी साढ़े चार साल की बिटिया ने यह कहानी मुझे फोन पर सुनाई। उसी की गढ़ी हुई है। जब मम्मी गुरुवार के व्रत की तैयारी कर रही थी तब बिटिया कहानी गढ़ रही थी। हो सकता है कि मैं अपनी बिटिया को शायद ज्यादा ही छोटी समझता हूं, लेकिन इस दौर के बहुत से बच्चे मुझे जब-तब अपने बड़प्पन से मुझे चौकाते रहते हैं।)
बुधवार, 24 नवंबर 2010
गुरुवार की नयी कहानी-लक्ष्मी माता की तिजौरी
बहुत पुरानी बात नहीं है। बिलकुल हाल की है। आज की ही। लक्ष्मी माता की तिजौरी गुम हो गई। तिजौरी समझते हैं न आप। वहीं जिसमें पैसे-वैसे रखते हैं। वही तिजौरी। लक्ष्मी माता परेशान। ढूंढने लगी यहां-वहां। लेकिन तिजौरी तो पानी में गिर गई थी। अपने घर के पास जो तालाब है ना, उसी में। लक्ष्मी माता वहां पर गईं। वहां शंकर भगवान मिले। शंकर भगवान का मंदिर है ना वहां पर। शंकर भगवान ने पूछा तो लक्ष्मी माता ने उन्हें बताया कि तिजौरी पानी में गिर गई। तो शंकर भगवान ने कहा कि मैं मदद करूंगा। उनके गले में सांप है ना, जो घिसट-घिसट कर चलता है। वो सांप पानी में उतरा। नीचे जाकर देखा तो तिजौरी एक पत्थर के नीचे फंसी हुई थी। सांप ने अपनी पूंछ से तिजौरी को निकाल लिया। फिर शंकर भगवान ने लक्ष्मी माता को दे दिया। लक्ष्मी माता तिजौरी लेकर विष्णु भगवान के पास आ गईं।
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