जरा इधर भी
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
जरा इधर भी: जल रहे जज्बात
जरा इधर भी: जल रहे जज्बात
: " शब्द मायूस हैं संवेदनाएं खामोश जज्बातों के खंडहर में फड़फड़ा रही है अभिव्यक्ति ये कैसा समय है दोस्तों कि हम और तुम बहुत कुछ कहना चाह रहे ह..."
1 टिप्पणी:
Randhir Singh Suman
4 नवंबर 2010 को 8:29 am बजे
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये
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