रविवार, 18 सितंबर 2011

जब धरती डोलती है
















राहत कर्मियों के साथ मैं। मेरे कैमरे से एक पत्रकार ने यह
 तस्वीर उतारी थी। वे महाराष्ट्र के गांवकरी अखबार से वहां आए थे
देश के बडे हिस्से में कल 18 सितंबर को भूकंप के झटके महसूस किए गए। भूकप के मामले में सुरक्षित कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के बड़े हिस्से में भी धरती में कंपन की खबर है। जिस वक्त धरती हिली उस वक्त मैं अपने शहर में नहीं था और जिस शहर में था वहां मैंने ऐसा महसूस नहीं किया। शाम को लौटा तो पता चला कि रायपुर के लोगों ने भी झटके महसूस किए। इसके बाद मैं पूरी रात ठीक से सो नहीं सका। हालांकि आज के अखबारों ने रायपुर में भूकंप की पुष्टि नहीं की है।  मैं गुजरात में यह देख चुका था कि धरती एक बार कांपती है तो रह-रह कर कांपती है। 
गुजरात में भूकंप आया तब मैंने देशबन्धु के पत्रकार के रूप में उसकी रिपोर्टिंग की थी। यह रिपोर्ट कई किस्तों में छपी थी। मैंने ढेर सारी तस्वीरें भी खींची थी। इन तस्वीरों को आज भी देखता हूं तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इन तस्वीरों के भीतर सड़ी हुई लाशों की दुर्गंध महसूस होती है। चीखती हुई औरतें, रोते हुए बच्चे, हताश और निराश मर्द नजर आते हैं। इस भयानक प्राकृतिक आपदा के बाद हर बार सरकारें भविष्य के बड़े नुकसान को रोकने के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाती हैं। सुरक्षित आवासों की कल्पनाएं की जाती हैं। लेकिन बाद में सब कुछ जस का तस हो जाता है। मेरे पास कुछ पुरानी तस्वीरें पड़ी हुई हैं, बहुत सी खो चुकी हैं। कुछ कतरने भी हैं। ये तस्वीरें और कतरनें देशबन्धु में छपी थीं और पूरी रिपोर्ट एक था भचाऊ शीर्षक से अक्षर-पर्व नाम की पत्रिका ने भी छापी थी। मैं इन्हें एक बार फिर शेयर कर रहा हूं। इस उम्मीद के साथ कि सरकारें अपनी भूली-बिसरी योजनाओं की फाइलों की धूल झाड़े। भूकंप के मामले में अनुसंधान तेज हो। हम इस बात को समझें की एक एक जिंदगी की  कीमत क्या होती है। किसी भयानक त्रासदी की प्रतीक्षा में हाथ धरे न बैठे रहें। 
पहले तस्वीरें पोस्ट कर रहा हूं- इन्हें देखें। आप चाहेंगे तो तब की रिपोर्ट भी प्रस्तुत करूंगा, श्रृंखला में। (देशबन्धु के प्रधानसंपादक श्री ललित सुरजन, तत्कालीन संपादक श्री सुनीलकुमार, तत्कालीन स्थानीय संपादक श्री रुचिर गर्ग, तत्कालीन सिटी चीफ श्री संदीपसिंह ठाकुर के आभार सहित, जिन्होंने मुझे गुजरात भेजने का निर्णय लिया था। और आभार रायपुर के गुजराती समाज का जिनके राहत दल के साथ मैं गुजरात रवाना हुआ था)

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