शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

हेलो, सुन रहा है कोई

यह एक गुफा है
और अंधेरा है बहुत
दीवारें किधर हैं पता नहीं
पता नहीं किधर निकास है

फोटो-केवलकृष्ण
पता पूछता हूं
तो दीवारों से टकराकर
लौटती है मेरी आवाज
पूछती है मुझसे ही-
किधर है निकास

अकेला नहीं हूं मैं
और भी हैं यहां
सब के सब अंधकार के अभ्यस्त
पर बोलते नहीं मेरी जुबां
उनकी जुबां समझता नहीं मैं

मैं अंधेरे से नहीं डरता
अंधेरे में मरने से डरता हूं शायद
कि मैं कब मर गया
किसी को पता ही नहीं चला

मौत के बाद
किसी के स्पर्श के क्या मायने
फिर भी चाहता हूं
मरूं तो कोई सहलाए मुझे
जगाए, कहे-उठो भी
अभी तो जीना है तुम्हें।
किसी के मातम के क्या मायने
फिर भी चाहता हूं
मातम हो मेरी मौत पर
आंसुओं से तर हो जाए मेरा चेहरा
कफन भींग जाए

मौत के बाद भी चाहता हूं प्रेम
यह अलग बात है कि
इसी प्रेम की तलाश में
बदहवास भटकता रहा जिंदगीभर
और भटकता-भटकता पहुंच गया यहां तक
अंधेरे में।

-केवलकृष्ण

3 टिप्‍पणियां:

  1. आप अंधेरे में उपस्थित बहुत से लोगों से प्रेम करिए। प्रेम और साथ से शक्ति उपजती है। आप गुफा का मार्ग तलाश लेंगे नहीं तो बना लेंगे। रोशनी से रूबरू होने को।

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  2. मैं अंधेरे से नहीं डरता
    अंधेरे में मरने से डरता हूं शायद
    कि मैं कब मर गया
    किसी को पता ही नहीं चला
    .
    अच्छाई अधेरे को दूर करती है. बढ़िया कविता
    अपने जायज़ रिश्तों के प्रति वफादार रहिये

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  3. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com/

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