सोमवार, 9 अगस्त 2010

महंगाई डायन से याराना

आज एक किराना दुकानवाले से बात हो रही थी। वो दुखी था। दुख यह था कि वह सस्ती और अच्छी चीजें बेचना चाहता है, पर लोग महंगी ही लेना चाहते हैं। सिर्फ इसलिए कि सस्ती चीजें उसके पास खुले में उपलब्ध हैं और जो महंगी बिक रहीं हैं उन्हें बड़ी-बड़ी कंपनियों ने पैक करके बाजार में लांच किया है। उसे हैरानी होती है कि खुली हुई चीजें चैक की जा सकती हैं और पैक की हुई चीजें के साथ यह सहूलियत नहीं होती, इसके बावजूद लोग पैक की हुई चीजों की ओर ही लपकते हैं। दुकानवाले ने कहा कि बड़ी कंपनियां ईमानदार ही हों और छोटा दुकानदार बेईमान ही हो, इस बात की क्या गारंटी है?
बात छोटी सी है, लेकिन पते की है। उसने कहा कि जो चीज मैं 100 रुपए में बेच रहा हूं, उससे घटिया क्वालिटी की चीज यदि मैं 200 रुपए में आकर्षक पैकिंग में बेचूं तो बहुत से लोग 200 वाली ही खरीदना पसंद करेंगे। उसने बात थोड़ी और आगे बढ़ा दी...सस्ते स्कूलों की अच्छी पढ़ाई बहुत से लोग पसंद नहीं करते, महंगे स्कूलों में बच्चों को शौक से •ोजते हैं। असल में दुकानवाला कहना चाहता था कि आज लोग महंगी चीजों की खरीदारी को शान समझते हैं। बाजार में इस बात की तलाश कोई गरीब ही करता है कि वही चीज किस जगह पर ज्यादा सस्ती बिक रही है। बड़ी कंपनियां समाज के बदले हुए मनोविज्ञान को खूब समझती हैं, और इसीलिए ये प्रचारित •ाी करती हैं कि पड़ोसी की धोती से ज्यादा सफेद धोती आपकी त•ाी हो पाएगी, जब आप उनका साबुन इस्तेमाल करेंगे।...हो सकता है कि किराना दुकानवाले की बातों से आप पूरी तरह सहमत न हों, लेकिन उसने एक बात छेड़ी तो जरूर हैं। क्या इसे आप आगे बढ़ाना चाहेंगे?

4 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi sahi baat uthaai hai bandhu aapke is kirana dukaandar ne,
    dar-asal ye sara khel ab dikhaave ka bhi ho gaya hai, ye hi sabse badaa lochaa hai....

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  2. दिखावे और फैशन की दुनिया में जो भी अफोर्ड कर पा रहा है- वो ही दिखावे में लगा है. बाजार और विज्ञापन हाबी हैं.

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