छोटी सी बात लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
छोटी सी बात लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 18 अगस्त 2010

नत्था : ये है संघर्ष की असल दास्तां

 ठाकुरराम यादव
कि गिरते हैं जी भरकर पहुंचना है जिनको बुलंदियों पर, लिखते हैं तकदीर वही लकीरे न हों जिनकी हथेलियों पर...यह पंक्ति छत्तीसगढ़ के रंगमंच के कलाकार और आमिर खान की हिट फिल्म पीपली लाइव के हीरो ओंकारदास मानिकपुरी पर सार्थक होती है। जिनका, पूरा जीवन खुद को पहचान दिलाने कभी गिरते, कभी संभलते और कभी गिरकर संभलने में बीता। गरीबी में पला, गुमनामी में संवरा और हथेलियों पर किस्मत की लकीरें ढूंढता रंगमंच का यह कलाकार आज हिंदुस्तान के चलचित्र पटल पर जगमगा रहा है। छत्तीसगढ़ के माटी की सोंधी महक को देश और दुनिया तक पहुंचाने वाले तो कई कलाकार हुए हैं, लेकिन भिलाई के इस नाटे कद के कलाकार ने एक ऐसी इबारत लिखी है, जो रंगमंचीय कलाकारों को दूर तक ले जाएगी।
बचपन में ही पलायन की तपती धूप ने एक अबोध बालक के शरीर को कुम्हला दिया। बात 1980 की है। पिता श्यामदास और मां गुलाबबाई महुआभाठा जिला राजनांदगांव में रोजी-मजूरी करते थे। तब ओंकारदास की उम्र महज छह साल रही होगी। मुफलिसी की तंज झेलता उसका परिवार कमाने-खाने वर्धा (महाराष्ट्र) चला गया। माता-पिता कभी र्इंट भट्ठों में तो कभी तनतीं ऊंची इमारतों के नीचे मलबा ढोते थे। उन्हें काम करता देख ओंकारदास भी उनके साथ हो लेता था। कुछ दिनों बाद काम मिलना बंद हो गया तो फिर वे गांव लौट आए। उनके माता-पिता चाहते थे, कि बच्चा थोड़ा-बहुत पढ़ ले कि उसे भी मजदूरी नहीं करनी पड़े। इसलिए उसे पहली कक्षा में दाखिला दिलाया। यह गांव भी उन्हें रास नहीं आया, इसलिए सालभर बाद 1981 में वे परिवार सहित भिलाई आ गए। यहीं उनका छोटा भाई रमेशदास पैदा हुआ। पहले ही गरीबी की मार झेलते परिवार में एक सदस्य की जिम्मेदारी बढ़ गई। ओंकारदास के माता-पिता मजदूरी करने सुबह से निकल जाते, तब वह छोटे भाई की तिमारदारी में जुटा रहता। खुद का घर नहीं था, इसलिए किराए का मकान लेकर रहते थे। बड़ी मुश्किल से दो जून की रोटी नसीब होती, तो सिर छिपाने के लिए छप्पर के बारे में सोचना भी उनके लिए पहाड़ लांघने से भी कठिन था। लेकिन, तब भी अल्हड़, अलमस्त और खुद में रमा रहने वाला ओंकारदास गाने-बजाने में मस्त रहता था। टीन-टपरों पर दातून पीटकर ताल निकालने की कोशिश में लगा रहता। घरवालों ने उसका अल्हड़पन देखकर फिर से स्कूल में दाखिला करा दिया, चूंकि पहली कक्षा की पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी, इसलिए दोबारा उसी क्लास में दाखिला दिला दिया। तब उसकी उम्र 12 साल की रही होगी। अपने से आधी उम्र के बच्चों के साथ बैठना उसे थोड़ा अटपटा लगता था। माता-पिता का कहना मानकर स्कूल तो चला जाता, लेकिन वहां भी वह अपनी ही धुनी रमाए रहता। दिनभर गाना-बजाना और नाचना।
मजबूरी में करनी पड़ी शादी
पिता की आमदनी खास नहीं थी, मजदूरी करते हुए मां की तबीयत दिन ब दिन खराब होने लगी। घर का काम करने वाला भी कोई नहीं था, लिहाजा उसे मजबूरन शादी करनी पड़ी। सुपेला की ही शिवकुमारी से उसकी शादी हो गई। तब वह 17 साल की उम्र में बीएसपी हाई स्कूल में छटवीं पढ़ता था। ओंकारदास बताता हैं कि तब तक उसकी दाढ़ी-मंूछ उग आई थी। बच्चे चिढ़ाते और उल्हाना देते थे। तंग आकर उसने पढ़ाई छोड़ दी। तभी गांव में एक सेठ के घर बच्चा हुआ तो जलसे में बैतलराम साहू का कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम को देखकर ओंकारदास के भीतर का कलाकार अंकुरित होने लगा। उसने उस दिन खुद को एक मुकाम तक पहुंचाने की जिद ठान ली। उसके इस मंसूबे को भांपते हुए पिता ने अमरदास मानिकपुरी से उसकी भेंट कराई, जो रंग मंच के कलाकार नवलदास मानिकपुरी के काफी करीबी थे। यहां से उनका नाटक और रंगमंच की दुनिया से जुड़ाव हुआ। रंगमंच के कलाकार झुमुकलाल देवांगन, तोरन ताम्रकार से नाटक और नृत्य सीखा। सहसपुर लोहारा में उसे एक कार्यक्रम में गम्मत (हास्य नाटक) करने बुलाया गया। यहां लोगों ने उसके अभिनय को सराहा। थोड़ा आगे चलकर सुभाष उपाध्याय से जुड़ने का मौका मिल गया। वे उस वक्त ‘नवा किसान’ नाम से साक्षरता कार्यक्रम चला रहे थे। उनके साथ उन्होंने 1999 में कुष्ठ पर जागरूकता कार्यक्रम किया। दुर्ग में साक्षरता भवन में भी बीबीसी के वर्कशाप से जुड़कर कई कार्यक्रम दिए। साक्षरता कार्यक्रम के समापन पर एक नाटक नन-पन के बिहाव किया। समापन अवसर के उनके इस कार्यक्रम को देखने हबीब तनवीर खुद साक्षरता भवन पहुंचे। वे इस नाटक को देखकर गदगद हो गए। इसके सप्ताहभर बाद साक्षरता भवन के डायरेक्टर डीआर शर्मा ने विभाष उपाध्याय को फोन पर बताया कि भोपाल से कलाकारों की मांग आई है। श्री तनवीर ने धन्नू लाल सिन्हा, भूपेंद्र साहू, महिला कलाकार स्वर्णलता सहित ओंकारदास को अपने ग्रुप में शामिल कर लिया। श्री तनवीर ने तब एक नाटक तैयार किया, जिसका नाम था ‘सुनबहरी’ था। इस नाटक का मंचन छत्तीसगढ़ के कई जिलों में हुआ। सन् 2000 में ओंकारदास, संतोष निषाद और धन्नू लाल सिन्हा को भोपाल बुलाया गया। इसके बाद ओंकार को छोटा-मोटा किरदार मिलने लगा। 2002 में हिरमा की अमर कहानी में लीड रोल मिला। इसमें उन्होंने एक रिक्शावाले की भूमिका निभाई जिसका हाथ कट जाता है। मानव संग्रहालय में चार तथा दिल्ली के ही एनएसडी में इसके दो शो हुए। यहां से उनकी   अभिनय क्षमता को वरिष्ठ कलाकारों ने पहचाना और लीड रोल मिलने लगा। चरणदास चोर, गांव के नाम ससुराल-मोर नाव दामाद, मुद्राराक्षस, काम देवता की अपनी बसंत ऋतु, जहरीली हवा, आगरा बाजार आदि में अभिनय किया।
मंच से कैमरे तक
हबीब तनवीर से जुड़ने के कारण ही ओंकारदास को 2008 में फिल्म पीपली लाइव का आफर मिला। इस फिल्म की राइटर अनुषा रिजवी दिल्ली नाटक देखने आती थीं। यहीं उन्होंने ओंकारदास को देखा। उन्होंने हबीब तनवीर से कलाकारों की मांग की, तब श्री तनवीर ने उन्हें दिल्ली भेजा। यहां हालांकि उसने एक अन्य रोल का आडिशन दिया, लेकिन आमिर खान ने उनका एक्ट देखते ही फिल्म के मुख्य कलाकार नत्था के लिए फाइनल कर दिया।
कलाकारों ने की आमिर की शिकायत
श्री मानिकपुरी ने कहा कि शूटिंग के दौरान आमिर खान कभी सेट पर नहीं आए। कलाकारों ने इसकी शिकायत अन्य लोगों से की। यह शिकायत आमिर खान तक पहुंची और उन्होंने इसे जायज समझा। एक दिन रात को अचानक साढ़े नौ बजे वे सेट पर पहुंच गए और पूरी रात और दिन कलाकारों के साथ बिताया। तब तक फिल्म का बहुत सा हिस्सा शूट हो चुका था। इससे पहले ओंकार को फिल्म की शुरुआत में काफी दिक्कत आई। अचानक कैमरे के सामने आने पर वे थोड़े असहज हो गए। तब सेट पर अनुषा रिजवी के पति मेहमूद फारुखी ने समझाया कि नाटक ही सोचककर अपना अभिनय करो। उनके समझाने के बाद ही वे एक्ट अच्छी तरह कर पाए।
( दैनिक नेशनल लुक के 19 अगस्त के अंक में ठाकुरराम यादव की रपट)

बुधवार, 11 अगस्त 2010

मज़ा किरकिरा मत करो यार

पीपली लाइव में दो लोकगीत सुनने को मिले, मजा आ गया। महंगाई डायन के बाद अब माटी का चोला धूम मचा रहा है। इनमें से माटी का चोला छत्तीसगढ़ का है। फिल्म में दोनों गानों को जितनी संजीदगी से लिया गया है, हम उतनी ही संजीदगी से सुन भी रहे हैं। महंगाई डायन जब पहली बार बजा तो लगा जैसे ये गीत मैंने ही लिखा है। यही हाल दूसरे गाने का भी है, मैं याद करने की कोशिश कर रहा हूं कि इसे मैंने कब लिखा होगा? ऐसा भी लगता है कि इन गीतों को मैंने ही पहली बार गाया था..आमिर खान कृपया इस ओर भी ध्यान दें। छत्तीसगढ़ी गाने चोला माटी के हे राम की रायल्टी हबीब तनवीर की बिटिया नगीन ने हासिल की है, इस गीत को लिखने का दावा करने वाले स्व.गंगाराम शिवारे का परिवार दुखी है। नगीन का कहना है कि इस गीत की रायल्टी उनके पास है और इसे लेकर किसी को गलतफहमी नहीं होनी चाहिए, यदि इसे गंगाराम शिवारे ने लिखा है तो उन्होंने हबीब साहब के निर्देशन लिखा होगा।...हबीब तनवीर काफी दिग्गज कलाकार थे, वे कवियों की संवेदना को भी निर्देशित करने की क्षमता रखते थे यह मुझे पहली बार पता चला है। नगीन ने मेरे मन में उनके प्रति सम्मान और बढ़ा दिया है। हबीब साहब की बिटिया होने के नाते नगीन के प्रति सम्मान तो है ही। अच्छा लग रहा है कि बेटी भी पिता की राह पर चल रही है। नगीन ने एक और बात कही है-इस गीत की धुन ट्राइबल है, इसका श्रेय किसी को नहीं लेना चाहिए। देखिये कितनी ईमानदारी है नगीन में। सास गारी देवे की धुन भी ट्राइबल थी, लेकिन तोड़मरोड़ कर उसका श्रेय रहमान ले उड़े। नगीन ने रिमिक्स नहीं किया नहीं तो ये गाना कुछ ऐसा होता..एखर का भरोसा चोला माटी के हे राम॥ओए होए...ओए होए।॥नगीन ने जो अहसान हम पर किया है कम से कम उसकी खातिर रायल्टी की दावेदारी हमें स्वीकार कर लेनी चाहिए। रही बात गंगाराम शिवारे की तो उनका परिवार तो गरीबी का आदी है ही, वो वैसे ही जी लेगा। उन लोगों को नाम की भी क्या जरूरत? हबीब साहब की बिटिया नगीन और गंगाराम शिवारे के बेटे •ौयालाल के इस पचड़े में घिस-घिस कर लोकगीत के शब्द भोथरे हो रहे है...एखर का भरोसा चोला माटी के हे राम। चलिए छोड़िए ये सब...इस वक्त कम से कम मुझे तो इस गीत का रस ले लेने दीजिए। मजा किरकिरा मत कीजिए प्लीज।

सोमवार, 9 अगस्त 2010

महंगाई डायन से याराना

आज एक किराना दुकानवाले से बात हो रही थी। वो दुखी था। दुख यह था कि वह सस्ती और अच्छी चीजें बेचना चाहता है, पर लोग महंगी ही लेना चाहते हैं। सिर्फ इसलिए कि सस्ती चीजें उसके पास खुले में उपलब्ध हैं और जो महंगी बिक रहीं हैं उन्हें बड़ी-बड़ी कंपनियों ने पैक करके बाजार में लांच किया है। उसे हैरानी होती है कि खुली हुई चीजें चैक की जा सकती हैं और पैक की हुई चीजें के साथ यह सहूलियत नहीं होती, इसके बावजूद लोग पैक की हुई चीजों की ओर ही लपकते हैं। दुकानवाले ने कहा कि बड़ी कंपनियां ईमानदार ही हों और छोटा दुकानदार बेईमान ही हो, इस बात की क्या गारंटी है?
बात छोटी सी है, लेकिन पते की है। उसने कहा कि जो चीज मैं 100 रुपए में बेच रहा हूं, उससे घटिया क्वालिटी की चीज यदि मैं 200 रुपए में आकर्षक पैकिंग में बेचूं तो बहुत से लोग 200 वाली ही खरीदना पसंद करेंगे। उसने बात थोड़ी और आगे बढ़ा दी...सस्ते स्कूलों की अच्छी पढ़ाई बहुत से लोग पसंद नहीं करते, महंगे स्कूलों में बच्चों को शौक से •ोजते हैं। असल में दुकानवाला कहना चाहता था कि आज लोग महंगी चीजों की खरीदारी को शान समझते हैं। बाजार में इस बात की तलाश कोई गरीब ही करता है कि वही चीज किस जगह पर ज्यादा सस्ती बिक रही है। बड़ी कंपनियां समाज के बदले हुए मनोविज्ञान को खूब समझती हैं, और इसीलिए ये प्रचारित •ाी करती हैं कि पड़ोसी की धोती से ज्यादा सफेद धोती आपकी त•ाी हो पाएगी, जब आप उनका साबुन इस्तेमाल करेंगे।...हो सकता है कि किराना दुकानवाले की बातों से आप पूरी तरह सहमत न हों, लेकिन उसने एक बात छेड़ी तो जरूर हैं। क्या इसे आप आगे बढ़ाना चाहेंगे?

शनिवार, 7 अगस्त 2010

पहली पाती


दोस्तों, इन दिनों में शहर में बारिश हो रही है। मौसम बड़ा ही प्यारा हो गया है। जो नदियां और तालाब सूख चुके थे, वे अब लबालब हैं। छलकती हुई नदी और तालाबों के किनारों पर बैठकर इनकी लहरों का मजा लेने की जी तो बहुत करता है, पर व्यस्तता की वजह से ले नहीं पाता। रास्ते से गुजरते हुए ही सुकून लूट लेता हूं। अभी थोड़े दिनों पहले तक जो धरती बेहद प्यासी नजर आ रही थी, अब अघाई हुई नजर आ रही है। बेहद संतुष्ट भी। हर तरफ इतनी हरियाली है कि देखकर मन भी हरा-भरा हो जाता है। मैं चाहता हूं कि ऐसी ही हरियाली हमेशा नजर आए, हर मौसम में, गरमी के मौसम में भी। मेरे शहर में मेरी तरह बहुत से लोग भी शायद ऐसा ही चाहते हैं। हम सबको पता है कि इतनी सारी हरियाली के लिए खूब सारे पेड़ लगाने होंगे। इस साल एक मैंने एक पेड़ लगाया है, यदि आपने भी लगाया हो तो लिखकर बताना जरूर।