उस फरिश्ते की लंबी-लंबी दाढ़ी है। वह गोली टोपी लगाता है। पान-बीड़ी-तम्बाकू कुछ नहीं खाता। कुर्ता-लुंगी पहनता है और सलाम-सलाम बोलता है। बस उसके बारे में इतना ही पता है। हां, उसका नाम जमील भाई है।
सीतानदी के जंगल में एक पहाड़ी नदी बहती है। अब आप तो जानते ही हैं कि पहाड़ी नदियां कितनी मूडी और कितनी लापरवाह होती है। जब उछल-कूद करती हैं तो उनसे चंचल कोई नहीं, जब शांत रहती हैं तो उनसे सीधे-सच्ची कोई नहीं। जब उफनती हैं तो बस उफनती हैं, पुल-पुलियों का सीना तोड़कर उफनती है।
पिछली बार कुछ यूं हुआ कि मित्रमंडली पिकनिक मनाने उसी जंगल में चली गई। जंगल में भी नदी के उस पर चली गई। रात उधर ही रुकने का प्रोग्राम भी बना लिया। अचानक मौसम बदल गया और बारिश शुरू हो गई। सुबह लौटने लगे तो नदी का तो रूप ही बदला हुआ था। जिस पुल से गुजरे थे वह गायब था। सड़क पर इस पार और उस पार वाहनों की लंबी लाइन लग गई थी। अब जंगल में ऐसी मुसिबत आ जाए तो अल्लाह ही याद आते हैं।
अल्लाह को लोग वहां अक्सर याद करते होंगे इसीलिए अल्लामियां ने वहां परमानेंट इंतजाम कर दिया है। अल्ला को याद कीजिए और जमील भाई हाजिर। नदी में जब भी उफान आता है लोग अल्ला-अल्ला करते हुए जमील भाई का इंतजार करते हैं। अब जमील•ााई कब आएंगे, किधर से आएंगे, किसी को नहीं पता, लेकिन सब को पता होता है कि वे आएंगे जरूर। और होता भी यही है, अपनी खटारा को खड़खड़ाते हुए जमील भाई पहुंच ही जाते हैं। आते ही काम पर लग जाते हैं। सब जानते हैं कि उफनती हुई नदी के उस पर उनकी गाड़ियों को जमील भाई ही ले जा सकते हैं।
aisi hoti hai pahadi nadiya |
अब ये जमील भाई कौन हैं मैं नहीं जानता। मेरा मित्र भी नहीं जानता। अपन तो बस उनकी जय बोलते हैं। दिल चाहे तो आप •ाी बोलिए। बोलो जमील भाई की..
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