सोमवार, 23 अगस्त 2010

पेड़ों को भाई बनाएं

सुनीति यादव
वृक्षों के महत्व को रेखांकित करते हुए भगवान बुद्ध ने कहा है कि वृक्ष तो असीम कृपा एवं कल्याण के स्त्रोत हैं। वे अपने लिए कुछ नहीं मांगते और हमें अपने फल-फूल उदारतापूर्वक देते रहते हैं। वे तो सबको छाया प्रदान करते हैं, यहां तक कि वृक्षों को काटने वाले भी उनकी सघन छाया के उतने ही अधिकारी हैं, जितने कि उन्हें लगाने और सींचने वाले। पुराणों में कहा गया कि दस कुओं के बारबार एक बावड़ी, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है। इसी शाश्वत सत्य को मनुष्य सदैव सम्मान देता आया है और यही कारण है कि हर काल में मनुष्य वनों या वृक्ष को किसी न किसी रूप में पूजता रहा है।
पूरी दुनिया में ऐसी मिसाल शायद ही कहीं देखने को मिले कि कोई देश अपने नागरिकों के समान पेड़ - पौधों और जीव जंतुओं को भी संवैधानिक अधिकार देता हो।लैटिन अमेरिका के एक छोटे से देश इक्वाडोर ने यह कमाल कर दिखाया है। पर्यावरण जागरूकता की मिसाल कायम करते हुए इसने नए संविधान में अपने नागरिकों के समान पेड़ -पौधों, नदियों और जीव जंतुओं की सुरक्षा के लिए पर्याप्त संवैधानिक अधिकारों की व्यवस्था की है।
संविधान में ‘प्रकृति के अधिकार’ के तहत वर्णित इस कानून में कहा गया है कि जीव जंतुओं और पेड़ -पौधों को मनुष्य के समान ही जीवित रहने, विकास करने और जीवन चक्र को आगे बढ़ाने का नैसर्गिक अधिकार है। इसलिए यह सरकार, समाज और लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि वह उन्हें इसके लिए समुचित सुरक्षा प्रदान करें”। पर्यावरण विशेषज्ञों ने इसे एक अभूतपूर्व कदम बताते हुए कहा है कि यह सैद्धांतिक रूप से तो काफी अहम है लेकिन व्यावहारिक रूप से इसमें दिक्कतें आ सकती हैं। http://josh18.in.com/showstory.php?id=322971
उदाहरण के लिए गढ़वाल और कुमायूं में देवदार, राजस्थान में खेजड़ी, छत्तीसगढ़ के सरगुजा, जशपुर अंचल में साल तता पूरे देश में पीपल, नीम, आंवला, बरगद के वृक्ष पूज्य माने जाते हैं। परंतु सभ्यता के तथाकथित विकास के साथ आज जिस गति से वन का विनाश हो रहा है वह समय कभी भी आ सकता है जब संकट की कठिन स्थिति पैदा हो जाए। तब हम रातों रात इसका हल नहीं ढूंढ पाएंगे, जैसे हाल में लेह लद्दाख सहित कई भागों में आई भयानक बाढ़ एवं पूरी दुनिया में हो रहा जलवायु परिवर्तन। इसलिए हमें आज और अभी से अपने वनों एवं वृक्षों के संरक्षण पर अधिक से अधिक ध्यान देना होगा। इनके साथ भावनात्मक संबंध स्थापित करना होगा।
आज संपूर्ण संसार वन एवं पर्यावरण के संरक्षण एवं विकास हेतु चिंतित है। यह महान कार्य आम जनता के सक्रिय सहयोग एवं भागीदारी से ही संभव है। इस तथ्य को स्वीकार करना एवं इसे वृहद स्तर पर लागू करना हमारा परम कर्तव्य है। तो फिर आइए वृक्ष हमारे बंधु की भावना दिल में बसाने की, वृक्षों को भाई मानकर इनकी रक्षा करने की नयी पहल करें। आइए रक्षा बंधन पर्व को हम हम वृक्ष-रक्षा पर्व के रूप में मनाएं। वृक्षों को राखी बांधकर उनके साथ भावनात्मक संबंध बनाएं और इस नये रिश्ते को सदैव जीवंत रखें। नि:संदेह वृक्ष हमारे भाई के समान हैं, जो दुखों को सहन कर जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे सुख-दुख में नि:स्वार्थ साथ देते हैं।
सुनीति यादव
ग्रीन गार्जियन सोसायटी, रायपुर

3 टिप्‍पणियां:

  1. नि:संदेह वृक्ष हमारे भाई के समान हैं, जो दुखों को सहन कर जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे सुख-दुख में नि:स्वार्थ साथ देते हैं।
    बहुत अच्‍छे विचार .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

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  2. सुन्दर विचार.

    रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  3. रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएँ

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