रविवार, 12 दिसंबर 2010

बांझ गाय देगी दूध

छत्तीसगढ़ के पशु वैज्ञानिकों की शानदार कामयाबी

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के ग्राम अंजोरा स्थित पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय के पशु वैज्ञानिकों को गायों के बांझपन को दूर करने और पशुओं में गोलकृमि रोग निवारण की नयी तकनीक विकसित करने में शानदार कामयाबी मिली है। इन वैज्ञानिकों ने अपने गहन अनुसंधान के द्वारा एक ऐसी प्रणाली का आविष्कार किया है, जिससे अब बांझ गायों को दुधारू बनाया जा सकेगा। इसके साथ ही पशुओं में गोलकृमि (निमटोड) जैसी गंभीर बीमारी का निदान भी हो सकेगा। पशु वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इन दोनों अनुसंधान तकनीकों के व्यवसायिक उपयोग के लिए हाल ही में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम, नई दिल्ली के बीच अनुबंध भी किया गया है। 

          इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के अंतर्गत संचालित पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय अंजोरा दुर्ग के पशुशरीर क्रिया विज्ञान विभाग द्वारा वर्ष 2004 से 2007 तक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा संचालित अनुसंधान परियोजना में किए गए शोघ में यह पाया कि बांझ गायों को भी दूधारू बनाया जा सकेगा। संस्थान के प्राध्यापक डॉ. जावेद खान के नेतृत्व में पशु वैज्ञानिकों के दल ने इसके लिए एक किट विकसित की है। जिसे पशु चिकित्सकों की मदद से मात्र चौबीस दिनों के उपचार से बांझ गायों को दुधारू बनाया जा सकेगा। इस तकनीक के उपयोग से यह भी पाया गया है कि नब्बे प्रतिशत गायों का बांझपन खत्म हो जाता है और वे भविष्य में गाभीन भी हो जाती है। इस तकनीक से बांझ गायों से प्राप्त दूध सामान्य गायों से प्राप्त दूध जैसा ही पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होता है। इसी तरह महाविद्यालय के पशु परजीवी विभाग द्वारा पशुओं में गोलकृमि जैसे गंभीर रोग के निवारण के लिए जैविक उत्पाद विकसित किया गया है। इस जैविक उत्पाद का दवाई के रूप में उपयोग करने से गोल कृमि की समस्या से निजात पाया जा सकता है। गौरतलब है कि पशुओं में गोलकृमि परजीवी की समस्या भारत सहित विश्व के दूसरे देशों में भी एक गंभीर समस्या है। इस रोग से पशुओं में डायरिया हो जाता है। जिससे दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में कमी आ जाती है साथ ही उनके बच्चों की मौत भी हो जाती है। गोलकृमि के रोकथाम के लिए बाजार में सामान्यत: रसायनयुक्त एलोपैथी दवाईयां उपलब्ध है परंतु इससे इसका स्थायी निदान नही हो पाता। महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. पी. के. सान्याल के नेतृत्व में पशु वैज्ञानिकों के दल द्वारा किए गए अनुसंधान में यह पाया कि गोलकृमि (निमटोड) के नियंत्रण के लिए आथ्रोबोट्रायस ओलिगोस्पोरा और डुडिंगटोनिया फलेगरेन्स फफूंद उपयुक्त है। इस फफूंद के पावडर को दवाई के रूप में उपयोग करने से गोलकृमि की समस्या से निजात पाया जा सकता है। पशु वैज्ञानिकों द्वारा विकसित उपरोक्त दोनों अनुसंधान तकनीकों के व्यवसायिक उपयोग के लिए हाल ही में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम, नई दिल्ली के बीच अनुबंध भी किया गया है। जिससे यह दवाईयां शीघ्र ही बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध हो सकेगी


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