जरा इधर भी
गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014
बस अभी-अभी तो
बस अभी-अभी तो
जागा सुकवा
आखें मलता अभी अभी ।
बस अभी-अभी तो
सोचा सुकवा
बस अभी अभी तो।
बस अभी अभी तो पौ फटी।
बिखरी लाली अभी अभी
बस अभी-अभी तो उगी कविता
बस अभी-अभी
-केवलकृष्ण
2 टिप्पणियां:
प्रवीण पाण्डेय
13 फ़रवरी 2014 को 5:54 am बजे
वाह, बस अभी अभी..
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Amrita Tanmay
23 फ़रवरी 2014 को 12:12 am बजे
अति सुन्दर ..
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वाह, बस अभी अभी..
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ..
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