गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

बस अभी-अभी तो

बस अभी-अभी तो
जागा सुकवा
आखें मलता अभी अभी ।
बस अभी-अभी तो
सोचा सुकवा
बस अभी अभी तो।
बस अभी अभी तो पौ फटी।
बिखरी लाली अभी अभी
बस अभी-अभी तो उगी कविता
बस अभी-अभी
-केवलकृष्ण

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