बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

पहला चित्रकोट महोत्सव 1 मार्च से



छत्तीसगढ़ में सिरपुर महोत्सव, भोरमदेव महोत्सव आदि विभिन्न सांस्कृतिक महोत्सवों की श्रृंखला में राज्य में अब चित्रकोट महोत्सव का भी आयोजन किया जाएगा। प्रदेश सरकार के सहयोग से बस्तर जिला प्रशासन द्वारा वहां के  विश्वप्रसिध्द चित्रकोट जलप्रपात के नजदीक इस आयोजन की तैयारी की जा रही है। चित्रकोट महोत्सव आगामी  एक मार्च से शुरू होगा और चार मार्च तक चलेगा। जलप्रपात का खूबसूरत नजारा देखने आने वाले सैलानियों को अब ''चित्रकोट-महोत्सव'' में भी शामिल होने का अवसर मिलेगा। उल्लेखनीय है कि इस मनोरम झरने के महत्व को देखते हुए मुख्यमंत्री ने जिला प्रशासन को वहां चित्रकोट महोत्सव की शुरूआत करने के निर्देश दिए थे। यह पहला चित्रकोट महोत्सव होगा। मेले के दौरान डिजनीलैण्ड, मीनाबाजार और प्रतिदिन शाम को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे। वहीं दिन में विविध खेल स्पर्धाओं के अलावा गीत, संगीत, नृत्य की स्पर्धाएं और स्वसहायता समूहों पर केन्द्रित अनेक कार्यक्रम होंगे। इसी प्रकार ''चित्रकोट-महोत्सव'' में विभिन्न विभागों की विभागीय प्रदर्शनियां भी आयोजित की जाएगी।

(जनसंपर्क छत्तीसगढ़)

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

छत्तीसगढ़ में अब मेले-मड़ई का मौसम


 धान फसल की कटाई  के बाद छत्तीसगढ़ के किसान अब माघ के महीने में राज्य के प्रमुख आस्था केन्द्रों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित होने वाले मेले मड़ई में शामिल होने के लिए उत्साह के साथ तैयारी कर रहे हैं। किसानों के साथ-साथ ग्रामीणों और आम नागरिकों में भी इन परम्परागत लोक उत्सवों को लेकर भारी उत्साह देखा जा रहा है। वैसे तो छत्तीसगढ़ के लिए यह मौसम ही मेले-मड़ईयों का मौसम है, लेकिन राज्य में माघ-पूर्णिमा के दिन महानदी के किनारे आयोजित होने वाले तीन प्रमुख वार्षिक मेलों का इनमें काफी महत्वपूर्ण स्थान है।

    रायपुर जिले के राजिम में महानदी, पैरी और सोढूर नदियों के पवित्र संगम पर एक पखवाड़े तक चलने वाला माघ पूर्णिमा का प्रसिध्द वार्षिक मेला इस महीने की 18 तारीख से शुरू हो रहा है। इसी तरह महानदी के साथ जोंक नदी और शिवनाथ के पावन संगम पर जांजगीर-चाम्पा जिले में शिवरीनारायण का वार्षिक मेला भी इसी दिन प्रारंभ होने जा रहा है। इसी दिन महानदी के ही किनारे महासमुंद जिले में प्रसिध्द ऐतिहासिक स्थल सिरपुर का वार्षिक मेला भी प्रारंभ होने जा रहा है। राज्य सरकार के निर्देश पर तीनों जिलों में वहां के जिला प्रशासन के अधिकारी स्थानीय जनप्रतिनिधियों और आम नागरिकों के सहयोग से इन आयोजनों की युध्द स्तर पर तैयारी कर रहे हैं। आयोजन स्थलों में बिजली, पानी, यातायात, वाहन पार्किंग, प्राथमिक चिकित्सा, जन-जीवन की सुरक्षा, अग्नि सुरक्षा आदि सभी जरूरतों को ध्यान में रखकर जरूरी इंतजाम किए जा रहे हैं। आयोजन समितियों का भी गठन किया गया है। प्रदेश सरकार द्वारा राजिम के वार्षिक मेले को 'राजिम कुंभ' के नाम से देश भर में एक नयी पहचान दी गयी है।
     महानदी, पैरी, सोढूर नदी के पावन संगम rajiv lochanपर स्थित छत्तीसगढ़ के प्रयागराज के रूप में प्रसिध्द तीर्थ नगरी राजिम के ऐतिहासिक माघ-पुन्नी मेले की प्रसिध्दि पूरे देश में हैं। यहां हर वर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक एक पखवाड़े का मेला लगता है। इस पवित्र नगरी के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के मंदिरों में प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिल्प कला का अनोखा समन्वय नजर आता है। यहां के प्रमुख मंदिरों में आठवीं शताब्दी के राजीव लोचन मंदिर, नवमीं शताब्दी के कुलेश्वर महादेव मंदिर और 14वीं शताब्दी के भगवान रामचंद्र के मंदिर सहित जगन्नाथ मंदिर, भक्तमाता राजिम मंदिर और सोमेश्वर महादेव मंदिर श्रध्दालुओं के लिए आस्था और विश्वास का केन्द्र है। महाभारत, मत्स्य पुराण और ब्रम्ह पुराण जैसे पौराणिक ग्रंथों में महानदी को चित्रोत्पला के नाम से भी संबोधित किया गया है।
    राज्य शासन के प्रयासों से परम्परागत राजिम मेले को एक नयी पहचान मिली है। छत्तीसगढ़ के प्रसिध्द राजिम मेले को राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2005 से भव्य स्वरूप में आयोजित करने का सिलसिला शुरू किया गया है। परम्परागत राजिम मेले को 'राजिम कुंभ' के रूप में आयोजित करने की परम्परा की शुरूआत के छठवें वर्ष में इस साल इसे और अधिक भव्य स्वरूप में आयोजित करने की तैयारी की गई है। इसके लिए राज्य शासन द्वारा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अध्यक्षता में केन्द्रीय समिति का गठन किया गया है। पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल को केन्द्रीय समिति का कार्यकारी अध्यक्ष तथा कृषि मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू को उपाध्यक्ष बनाया गया है। श्रध्दालुओं के लिए पेयजल, भोजन, चिकित्सा, सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए जा रहे हैं। मेला स्थल पर नदी में मुरम की आंतरिक सड़कों का निर्माण तेजी से चल रहा है। राजिम और नवापारा के सभी मंदिरों में रोशनी की व्यवस्था की जा रही है। मेले के दौरान आठ दिवसीय संत समागम का आयोजन भी किया जाएगा। त्रिवेणी संगम पर बने मुक्ताकाशी मंच पर राजीव लोचन महोत्सव का आयोजन होगा, जिसमें छत्तीसगढ़ की लोक कला की विविधता देखने को मिलेगी। राज्य शासन के विभिन्न विभागों द्वारा विकास प्रदर्शनी भी मेले के दौरान लshivrinarayanगायी जाएगी।
    राजिम के संगम स्थल पर नदी की रेत में 14 किलोमीटर आंतरिक सड़कें बनायी गयी है। इनमें से चार प्रमुख सड़कों की चौड़ाई 12 मीटर रखी गयी है। मेला स्थल पर शासकीय विभागों की विकास प्रदर्शनी के आयोजन की तैयारी चल रही है। श्रध्दालुओं के लिए पेयजल व्यवस्था करने 8 किलोमीटर पाईप लाईन बिछायी जा रही है। पेयजल की आपूर्ति करने 20 टंकियां स्थापित की जा रही है। सात नलकूप खनन किए किए गए हैं। संत समागम स्थल पर पेयजल और शौचालयों की व्यवस्था की गई है। मेला स्थल पर प्रकाश व्यवस्था करने दस ट्रांसफार्मर लगाए जा रहे हैं। राजिम-नयापारा के पास बने नए और पुराने दोनों पुलों में रौशनी की व्यवस्था की जा रही है। मेला स्थल पर 24 घंटे प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराने चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ तैनात किए जा रहे हैं। पांच एम्बुलेंस और दो संजीवनी आपात एम्बुलेंस की व्यवस्था भी कर ली गई है। श्रध्दालुओं को सस्ती दर पर भोजन उपलब्ध कराने 60 दाल-भात अन्नपूर्णा दाल-भात केन्द्र स्थापित किए जा रहे हैं।
   laksham temple प्रदेश के जांजगीर-चाम्पा जिले में महानदी, शिवनाथ और जोंक नदियों के संगम पर स्थित शिवरीनारायण प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिध्द है। यह पवित्र भूमि रामायणकालीन प्रसंगों से जुड़ी हुई है। शिवरीनारायण् में भी 15 दिवसीय माघ-पुन्नी मेला लगता है। शिवरीनारायण के प्रसिध्द मंदिरों में नर-नारायण मंदिर, केशव नारायण मंदिर, चन्द्रचूड़ महादेव मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर और जगन्नाथ मंदिर शामिल है। इस वर्ष शिवरीनारायण् मेला 18 फरवरी से 2 मार्च तक चलेगा। जिला प्रशासन द्वारा मेले में आने वाले श्रध्दालुओं के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएं जुटाई जा रही है। मेला सुरक्षा समिति और मेला आयोजन समिति का गठन किया जा चुका है। महासमुंद जिले में महानदी के तट पर स्थित ऐतिहासिक और पुरातात्विक नगरी सिरपुर को वर्तमान छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। सिरपुर के ऐतिहासिक महत्व का परिचय शरभपुरीय शासक प्रवर राज तथा महासुदेव राज के ताम्रपत्र से मिलता है। सिरपुर में माघ-पूर्णिमा के अवसर पर 17 फरवरी से 19 फरवरी तक सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। सिरपुर महोत्सव के व्यवस्थित और सफलतापूर्वक आयोजन के लिए अलग-अलग समितियां गठित की गयी है। साफ-सफाई, विद्युत, पेयजल, सुरक्षा, यातायात, चिकित्सा आदि व्यवस्थाओं के लिए अलग-अलग समितियां गठित की गयी है।
(जनसंपर्क छत्तीसगढ़)

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

छत्तीसगढ़ के अचानकमार अभ्यारण्य में काला तेन्दुआ


  रायपुर 09 फरवरी 2011.छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित अचानकमार टायगर रिजर्व क्षेत्र में दुर्लभ किस्म का काला तेन्दुआ मिला है। बाघों की गणना के लिए लगाए गए कैमरे में काले रंग के तेन्दूए की तस्वीर वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आॅफ इण्डिया (डब्ल्यू डब्ल्यू आई) की टीम ने रिकार्ड की है। छत्तीसगढ़ के साथ मध्यभारत में पहली बार किसी जिंदा काले तेन्दूए की तस्वीर लेने में वन विभाग को सफलता मिली है। मुख्य वन संरक्षक और बिलासपुर वनवृत्त के प्रभारी श्री दिवाकर मिश्रा ने आज यहां बताया कि ऐसे घने जंगल, जहां सूरज की रौशनी सतह पर नहीं पहुंच पाती है, वहां आमतौर पर काले तेन्दूए पाए जाते हैं। तेन्दूए का काला रंग उन्हें घने जंगलों में शिकार करने और छुपने में मददगार साबित होता है। अचानकमार में काले तेन्दूए की उपस्थिति से इस अभ्यारण्य की एक विशिष्ट पहचान बनी है। बिलासपुर वनवृत्त के वन संरक्षक श्री आई.एन.सिंह और वन मण्डलाधिकारी श्री एस.एस.डी. बड़गैय्या ने अचानकमार टायगर रिजर्व का निरीक्षण किया। उन्होंने वन्य प्राणियों की गणना और वनों की सुरक्षा कार्य कुशलतापूर्वक संचालित करने के लिए डब्ल्यू. टी. आई और वन विभाग के अधिकारियों को बधाई भी दी।
(जनसंपर्क छत्तीसगढ़)

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

आंसुओं ने चूम लिए कदम


केवलकृष्ण
  रायपुर। सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब जलवानशीं हुए तो छत्तीसगढ़ ने बिछकर कदम चूम लिए। रुंधे हुए गले और लरजती हुई आवाज में कहा-मेरे मौला, दुनिया के नक्शे में राई जित्ते बड़े भी कहां हैं हम। आपकी मोहब्बत, जो आपने खुद यहां आकर अपना दीदार करा दिया।
 बोहरा समाज के 52वें दाई सैयदना साहब करीब 66 साल पहले जब रायपुर आए थे तो यहां के लोगों ने यह सोचा भी न होगा कि उनके दीदार की खुशनसीबी दोबारा नसीब होगी। लेकिन खुशनसीबी न सिर्फ खुद को दोहरा रही है, बल्कि दुगनी होकर आई है। बोहरा समाज के लोगों की दोहरी खुशी इस बात को लेकर है कि ठीक उस वक्त, जबकि सैयदाना साहब 100 साल के होने जा रहे हैं, वे रायपुर में हैं। वे 25 मार्च को सौ साल के हो जाएंगे। लोगों में इस बात की भी खुशी है कि सैयदना साहब ने ईद के मुबारक मौके पर रायपुर आकर यहां के लोगों को ईदी दे दी है। वे पहली बार यहां अपने वालिद सैयदना ताहिर सैफुद्दीन के साथ आए थे, और अबकी बार जब वे आए हैं तो रायपुर को 4 करोड़ रुपए की लागत से बनी मस्जिद के रूप में एक शानदारी ईमारत की सौगात देने वाले हैं। सैयदना साहब मंगलवार 9 फरवरी को यह इमारत शहर को सौंप देंगे। इस मस्जिद का निर्माण सदरबाजार में किया गया है और इस तरह रायपुर को मिल रही शानदार ईमारतों का सिलसिला और आगे बढ़ जाएगा। रायपुर में सैयदना साहब का प्रोग्राम पहले 4 रोज का तय हुआ था, लेकिन अब इसमें एक दिन का इजाफा और कर दिया गया है। यानी न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि उड़ीसा और महाराष्टÑ जैसे राज्यों के लिए भी उनके दीदार के लिए मौके ही मौके हैं। इस दौरान उनकी मौजूदगी में कई छोटे-छोटे प्रोग्राम बोहरा समाज ने तय किए हैं।
 जज्बात का सैलाब
सैयदना साहब के छत्तीसगढ़ पहुंचने की खबर पाकर दूर-दराज से भी लोग रायपुर दौड़े आए थे। इस्तेकबाल का प्रोग्राम राम वाटिका में तय हुआ था। एयरपोर्ट से शहर आने के रास्ते में यह जगह तय हुई थी। सुबह 7 बजे से ही हजारों की तादाद में लोग जमा होने लगे थे। सैयदना साहब प्राइवेट प्लेन से पहुंचने वाले थे। लोगों की निगाहें आसमान टटोलती रहीं। किसी प्लेन ने रामवाटिका के ऊपर से उड़ान भरी तो, कोई हेलीकाप्टर फड़फड़ाते हुए गुजरा तो, लगा सैयदना साहब बस आ ही गए हैं। वाटिका के गेट से लेकर भीतर मंच तक तैनात वालेंटियर्स, स्पेशल बैंड के लोग, छत्तीसगढ़ और बाहर से आए बोहरा समाज की कई हस्तियां और मंच के सामने मैदान पर  आम लोग, हर कोई अनुशासित था। गजब के धैर्य के साथ सबकी निगाहें सैयदना साहब का रास्ता निहार रही थीं। सुबह दस बजे के बाद जब शहर के दूसरे इलाकों में धूप चिलचिलाने लगी थी, तब भी श्रीराम वाटिका के माहौल में नरमी थी। दोपहर 12 बजे और फिर एक बजे...खबर आई सैयदना साहब थोड़ी ही देर में जलवानशीं होने ही वाले हैं। जब-जब उम्मीदें उमड़ती तो नारों से वाटिका गूंज उठती। प्लेन लेट था। छोटे-छोटे बच्चों को लिए माएं अपनी जगह पर डटी हुईं थीं। बुजुर्ग सबसे आगे की लाइन में थे ताकि थकी हुई उनकी निगाहें सैयदना साहब को ठीक से देख पाएं। सफेद गुब्बारे हवा में फड़फड़ा कर इस्तेकबाल के लिए अपनी बेताबी जाहिर कर रहे थे। न वहां भूख थी, न प्यास। मीडिया के लोग कल्पना कर रहे थे कि सैयदना साहब  के आते ही थोड़ी अव्यवस्था हो सकती है। लोग शायद उनके दीदार के लिए दौड़े पड़ें और फोटो लेने का मौका ही न मिले। लेकिन हैरानी इस बात की कि जब वह पल सचमुच आया तो ऐसा कुछ नहीं हुआ। हर कोई इस बात का खयाल रख रहा था कि उनकी वजह से सैयदना साहब को जरा भी तकलीफ नहीं होनी चाहिए। जो जहां था, वहीं से खड़ा होकर अपनी सलामी सैयदना साहब तक पहुंचा रहा था। हजारों जोड़े हाथ सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब के इस्तेकबाल के लिए हवा में उठे हुए थे।
और आंसू निकल पड़े
सैयदना साहब की कार वाटिका में दाखिल हुई तो लोगों की आखों से आंसू निकल पड़े। वे फूलों से सजी एक कार में वाटिका में दाखिल हुए। बाहर से निगाहों कार के शीशे का पीछा  कर रही थीं और भीतर से सैयदना साहेब अपना एक हाथ आशीष की मुद्रा में उठाए हर एक को निहार रहे थे। मंच ऐसी जगह पर बनाया गया था और इंतजाम कुछ इस तरह के थे कि मैदान में मौजूद हर शख्स सैयदना साहब का दीदार कर सके। नमाज का वक्त बीत चुका था और ऐसा लग रहा था कि सैयदना साहब के इस्तेकबाल का प्रोग्राम दो-चार मिनट ही शायद चल पाएगा। इस बात की संभावना भी नहीं थी कि इस जगह पर लोगों को उन्हें सुनने का मौका मिल पाएगा। लेकिन किस्मत की मेहरबानी देखिए, सैयदना साहब 20 मिनट से ज्यादा मंच पर रुके। लोगों ने छककर, जीभरकर उनके दीदार किए। और इतना ही नहीं, सैयदना साहब ने वहीं से छत्तीसगढ़ के हक में दुआएं कीं। उन्होंने कहा यहां अमनो-चैन बना रहे, रोजगार में बरकत हो, इस शहर में जितने भी लोग हैं मैं अल्लाताला से हरेक के हक में दुआ कर रहा हूं। और भीड़ ने कहा-आमीन।
बिलासपुर ने न्योता दिया
छत्तीसगढ़ की धरती पर सैयदना को पाकर बिलासपुर के लोग खुद को रोक नहीं पाए। भीड़ के एक कोने में खड़े वे हाथों में तख्तियां लिए सैयदना साहब को बिलासपुर आने का न्योता दे रहे थे। वे बार बार नारे लगाकर उन्हें बिलासपुर बुला रहे थे। मंच पर   उनके प्रतिनिधि के रूप में मौजूद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने भी सैयदना साहब की कदमबोसी की और कहा कि एक बार बिलासपुर भी जरूर आएं।

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

छत्तीसगढ़ में बनेगा हाथी रिजर्व क्षेत्र



वन मंत्री की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में लिया गया फैसला

    
छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों के संरक्षण और सुरक्षित रहवास के लिए हाथी रिजर्व क्षेत्र बनाया जाएगा। यह रिजर्व क्षेत्र तीन अलग-अलग क्षेत्रों में जशपुर जिले के बादलखोल अभ्यारण, सरगुजा जिले के सेमरसोत अभ्यारण और तमोरपिंगला अभ्यारण में लगभग 1200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बनाया जाएगा। इस रिजर्व क्षेत्र को आपस में कोरिडोर के जरिए जोड़ा जाएगा। वन मंत्री श्री विक्रम उसेण्डी की अध्यक्षता में आज दोपहर यहां मंत्रालय में आयोजित बैठक में यह फैसला लिया गया।
    उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ के उत्तरी क्षेत्र विशेषकर सरगुजा, कोरबा और जशपुर जिलों में जंगली हाथियों की समस्या रही है। वर्तमान में लगभग डेढ़ सौ हाथियों द्वारा अनेक समूहों में राज्य के विभिन्न जंगलों और उससे लगे ग्रामीण क्षेत्रों में विचरण करते रहते हैं। हाथियों के लिए विशेष रिजर्व क्षेत्र घोषित करने से इन क्षेत्रों को हाथियों के लिए आदर्श क्षेत्र के रूप में विकसित करने में मदद मिलेगी। हाथियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र विकास के लिए अलग से कार्ययोजना बनाया जाएगा। इन क्षेत्रों में पर्याप्त जलाशय, उपयोगी खाद्य प्रजाति जैसे बांस और घास पौधों का रोपण किया जाएगा। इसके अलावा आस पास के क्षेत्र में पारिस्थितिकीय पर्यटन को बढ़ावा देकर स्थानीय ग्रामीणों को आजीविका के बेहतर अवसर उपलब्ध कराया जाएगा। हाथी रिजर्व क्षेत्र में बादलखोल अभ्यारण क्षेत्र के 104 वर्ग किलोमीटर, सेमरसोत अभ्यारण के 430 वर्ग किलोमीटर और तमोरपिंगला क्षेत्र के 608 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शामिल होगा। इन्हें आपस में कोरिडोर (गलियारा) के जरिए जोड़ा जाएगा। इन कोरिडोर से होकर हाथियों का समूह रिजर्व क्षेत्र में आवागमन कर सकेगा। इन रिजर्व और कोरिडोर क्षेत्र का निर्धारण करते समय व्यापक सर्वेक्षण किया गया है।
    बैठक में अधिकारियों ने बताया कि हाथियों के उत्पात से पिछले पांच वर्षों में जनहानि, जनघायल, मकान क्षति और फसल क्षति के लिए मुआवजा के रूप में राज्य शासन द्वारा साढ़े छह करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति राशि वितरित की गई है। बैठक में अधिकारियों ने बताया कि राज्य के अतिसंवेदनशील दस ग्रामों में हाथियों के ग्रामीण क्षेत्रों में अतिक्रमण को रोकने के लिए एक सौ किलोमीटर क्षेत्र में सोलर फेन्सिंग का कार्य शुरू हो गई है। इसके अलावा वन्य प्राणी से संबंधित अन्य योजनाओं और बजट की भी समीक्षा की गई। बैठक में अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री नारायण सिंह, प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री आर.के.शर्मा, मुख्य वन्य प्राणि अभिरक्षक श्री रामप्रकाश सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

जंगल का भगवान


110 बरस का सागौन जंगल अब उजाड़
मनीराम प्लांटेशन इतिहास में गुम हो रहा
राज्य सरकार और वन महकमा यह कहकर अपनी पीठ ठोंक लेता है कि हमने लाखों पौधे लगाए, भले ही पौधे जीवित बचें या नहीं। हकीकत में छत्तीसगढ़ में जिसने प्लांटेशन की शुरुआत की और जिसकी याद में आज भी सागौन वेरायटी का नाम रखा गया है, उसे सरकार और वन महकमे ने भुला दिया। जी हां, हम बात कर रहे हैं, मनीराम प्लांटेशन की। पौने तीन मीटर मोटाई वाले सागौन के पेड़ के जंगल, जो अब खत्म होने को हैं। प्रशासन की उदासीनता से पूरा जंगल इतिहास से गुम हो जाएगा।
मनोज व्यास
रायपुर. बार नवापारा से लगे देवपुर के जंगल का एक हिस्सा सागौन की खास किस्मों के लिए जाना जाता है। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान मनीराम नाम के एक बीटगार्ड ने सागौन का यह जंगल तैयार किया था, जिसकी उसे सजा दी गई। मध्यप्रदेश सरकार ने तो मनीराम के पोते को सम्मानित कर अपना हक अदा कर दिया पर छत्तीसगढ़ सरकार ने पूछा भी नहीं। मनीराम प्लांटेशन की अब इतनी दुर्गति हो गई कि कुछ साल में नामोनिशान खत्म हो जाएगा।
पौने तीन मीटर की मोटाई और 28 मीटर तक ऊंचे मनीराम के सागौन देखकर लोग दांतों तले ऊंगली दबा लेते हैं। आज से 110 साल पहले मनीराम ने देवपुर के जंगल में सागौन के पौधे रोपे थे। जानकार इसे हरा सोना कहा जाने वाला सागौन रोपने की शुरुआत मानते हैं। प्लांटेशन की नींव रखने वाले मनीराम की गांववाले पूजा करते हैं। उसी जंगल में एक पत्थर को मनीराम का प्रतीक मानकर हर त्योहार में पूजा जाता है। वन विभाग ने सिर्फ एक बोर्ड लगाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली, फिर मुड़कर नहीं देखा। आज मनीराम के लगाए पौधे एक-एक कर जड़ समेत नीचे गिर रहे हैं। महकमे की लापरवाही से बड़ा रकबा सिमटकर एक एकड़ भी नहीं बचा। आसपास खेत बन गए हैं। मनीराम के लगाए खास किस्म के पेड़ तो अब उंगलियों में गिने जा सकते हैं। सौ पेड़ अब सिर्फ तीन ही रह गए, जो अपनी वजन के कारण अब गिरने को है। वन महकमे ने खास किस्मों को सुरक्षित रखने की पहल भी नहीं की। देवपुर और बार नवापारा में सागौन के ऐसे पेड़ और कहीं नहीं हैं, जो मनीराम ने लगाए थे। मनीराम प्लांटेशन का प्रचार भी नहीं किया गया कि ऐतिहासिक प्लांटेशन तक पर्यटक पहुंचे। वन विभाग के पुराने फारेस्ट गार्ड को छोड़ दें तो कोई मनीराम प्लांटेशन के बारे में जानता भी नहीं। पर्यटन विभाग की भी किताब में इसका उल्लेख नहीं है।
तब मिली शांति 
गिधपुरी गांव के लोगों का कहना है कि नौकरी से निकाले जाने के बाद मनीराम पागलों की तरह भटकने लगा था, फिर उसकी मौत हो गई। मरने के बाद उसकी आत्मा जंगल और गांव में भटकती थी, जिसे बैगाओं ने मिलकर मनीराम प्लांटेशन के बीच ही एक बरगद के पेड़ में स्थापित किया। इसके बाद उसकी आत्मा शांत हुई और भटकना बंद किया। होली, दिवाली, हरेली सभी  त्योहारों में उसकी पूजा की जाती है।
आज भी हैं अवशेष
पिथौरा ब्लाक के कुम्हारीमुड़ा निवासी मनीराम बीटगार्ड था और गिधपुरी के पास ही बेरियर में उसकी पोस्टिंग थी। जहां बेरियर था, वहां की जगह उथली है। बेरियर के पास कुआं भी था, जो आज पट गया है, लेकिन कुआं की निशानी आज भी बाकी है। कुएं के पास ही आम के पेड़ हैं, जो जीवित हैं। गांववालों का कहना है कि पेड़ में आज भी काफी फल लगते हैं। आम के पेड़ काफी मजबूती से जमे हुए हैं। 
अब कोई देखने भी नहीं आता
गिधपुरी निवासी कुंजराम बुड़ेक का कहना है कि लंबा अरसा बीत गया है, कोई अब मनीराम प्लांटेशन देखने भी नहीं आया। 17 साल पहले मध्यप्रदेश शासनकाल में मंत्री शिवनेताम ने मनीराम के पोते प्रेमसिंह का सम्मान किया था। फिर लोग प्रेमसिंह को भी भूल गए। अब उसका भी निधन हो चुका है। सिघरू गोंड़, जो बैगा भी हैं, बताते हैं कि मनीराम की आत्मा जंगल की रखवाली के लिए चिंतित थी। पूजा करने के बाद उसकी आत्मा तो शांत हो गई, लेकिन जंगल की रखवाली करने अफसर नहीं आए। गिधपुरी के ही प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक जनकराम दीवान और गोसाईराम साहू मनीराम प्लांटेशन का इतिहास नहीं जानते थे, लेकिन उनकी इच्छा है कि वे बच्चों को मनीराम प्लांटेशन का इतिहास बताएं और बच्चों को पौधरोपण की शिक्षा दें।