धान फसल की कटाई के बाद छत्तीसगढ़ के किसान अब माघ के महीने में राज्य के प्रमुख आस्था केन्द्रों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित होने वाले मेले मड़ई में शामिल होने के लिए उत्साह के साथ तैयारी कर रहे हैं। किसानों के साथ-साथ ग्रामीणों और आम नागरिकों में भी इन परम्परागत लोक उत्सवों को लेकर भारी उत्साह देखा जा रहा है। वैसे तो छत्तीसगढ़ के लिए यह मौसम ही मेले-मड़ईयों का मौसम है, लेकिन राज्य में माघ-पूर्णिमा के दिन महानदी के किनारे आयोजित होने वाले तीन प्रमुख वार्षिक मेलों का इनमें काफी महत्वपूर्ण स्थान है।
रायपुर जिले के राजिम में महानदी, पैरी और सोढूर नदियों के पवित्र संगम पर एक पखवाड़े तक चलने वाला माघ पूर्णिमा का प्रसिध्द वार्षिक मेला इस महीने की 18 तारीख से शुरू हो रहा है। इसी तरह महानदी के साथ जोंक नदी और शिवनाथ के पावन संगम पर जांजगीर-चाम्पा जिले में शिवरीनारायण का वार्षिक मेला भी इसी दिन प्रारंभ होने जा रहा है। इसी दिन महानदी के ही किनारे महासमुंद जिले में प्रसिध्द ऐतिहासिक स्थल सिरपुर का वार्षिक मेला भी प्रारंभ होने जा रहा है। राज्य सरकार के निर्देश पर तीनों जिलों में वहां के जिला प्रशासन के अधिकारी स्थानीय जनप्रतिनिधियों और आम नागरिकों के सहयोग से इन आयोजनों की युध्द स्तर पर तैयारी कर रहे हैं। आयोजन स्थलों में बिजली, पानी, यातायात, वाहन पार्किंग, प्राथमिक चिकित्सा, जन-जीवन की सुरक्षा, अग्नि सुरक्षा आदि सभी जरूरतों को ध्यान में रखकर जरूरी इंतजाम किए जा रहे हैं। आयोजन समितियों का भी गठन किया गया है। प्रदेश सरकार द्वारा राजिम के वार्षिक मेले को 'राजिम कुंभ' के नाम से देश भर में एक नयी पहचान दी गयी है।
महानदी, पैरी, सोढूर नदी के पावन संगम पर स्थित छत्तीसगढ़ के प्रयागराज के रूप में प्रसिध्द तीर्थ नगरी राजिम के ऐतिहासिक माघ-पुन्नी मेले की प्रसिध्दि पूरे देश में हैं। यहां हर वर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक एक पखवाड़े का मेला लगता है। इस पवित्र नगरी के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के मंदिरों में प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिल्प कला का अनोखा समन्वय नजर आता है। यहां के प्रमुख मंदिरों में आठवीं शताब्दी के राजीव लोचन मंदिर, नवमीं शताब्दी के कुलेश्वर महादेव मंदिर और 14वीं शताब्दी के भगवान रामचंद्र के मंदिर सहित जगन्नाथ मंदिर, भक्तमाता राजिम मंदिर और सोमेश्वर महादेव मंदिर श्रध्दालुओं के लिए आस्था और विश्वास का केन्द्र है। महाभारत, मत्स्य पुराण और ब्रम्ह पुराण जैसे पौराणिक ग्रंथों में महानदी को चित्रोत्पला के नाम से भी संबोधित किया गया है।
राज्य शासन के प्रयासों से परम्परागत राजिम मेले को एक नयी पहचान मिली है। छत्तीसगढ़ के प्रसिध्द राजिम मेले को राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2005 से भव्य स्वरूप में आयोजित करने का सिलसिला शुरू किया गया है। परम्परागत राजिम मेले को 'राजिम कुंभ' के रूप में आयोजित करने की परम्परा की शुरूआत के छठवें वर्ष में इस साल इसे और अधिक भव्य स्वरूप में आयोजित करने की तैयारी की गई है। इसके लिए राज्य शासन द्वारा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अध्यक्षता में केन्द्रीय समिति का गठन किया गया है। पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल को केन्द्रीय समिति का कार्यकारी अध्यक्ष तथा कृषि मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू को उपाध्यक्ष बनाया गया है। श्रध्दालुओं के लिए पेयजल, भोजन, चिकित्सा, सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए जा रहे हैं। मेला स्थल पर नदी में मुरम की आंतरिक सड़कों का निर्माण तेजी से चल रहा है। राजिम और नवापारा के सभी मंदिरों में रोशनी की व्यवस्था की जा रही है। मेले के दौरान आठ दिवसीय संत समागम का आयोजन भी किया जाएगा। त्रिवेणी संगम पर बने मुक्ताकाशी मंच पर राजीव लोचन महोत्सव का आयोजन होगा, जिसमें छत्तीसगढ़ की लोक कला की विविधता देखने को मिलेगी। राज्य शासन के विभिन्न विभागों द्वारा विकास प्रदर्शनी भी मेले के दौरान लगायी जाएगी।
राजिम के संगम स्थल पर नदी की रेत में 14 किलोमीटर आंतरिक सड़कें बनायी गयी है। इनमें से चार प्रमुख सड़कों की चौड़ाई 12 मीटर रखी गयी है। मेला स्थल पर शासकीय विभागों की विकास प्रदर्शनी के आयोजन की तैयारी चल रही है। श्रध्दालुओं के लिए पेयजल व्यवस्था करने 8 किलोमीटर पाईप लाईन बिछायी जा रही है। पेयजल की आपूर्ति करने 20 टंकियां स्थापित की जा रही है। सात नलकूप खनन किए किए गए हैं। संत समागम स्थल पर पेयजल और शौचालयों की व्यवस्था की गई है। मेला स्थल पर प्रकाश व्यवस्था करने दस ट्रांसफार्मर लगाए जा रहे हैं। राजिम-नयापारा के पास बने नए और पुराने दोनों पुलों में रौशनी की व्यवस्था की जा रही है। मेला स्थल पर 24 घंटे प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराने चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ तैनात किए जा रहे हैं। पांच एम्बुलेंस और दो संजीवनी आपात एम्बुलेंस की व्यवस्था भी कर ली गई है। श्रध्दालुओं को सस्ती दर पर भोजन उपलब्ध कराने 60 दाल-भात अन्नपूर्णा दाल-भात केन्द्र स्थापित किए जा रहे हैं।
प्रदेश के जांजगीर-चाम्पा जिले में महानदी, शिवनाथ और जोंक नदियों के संगम पर स्थित शिवरीनारायण प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिध्द है। यह पवित्र भूमि रामायणकालीन प्रसंगों से जुड़ी हुई है। शिवरीनारायण् में भी 15 दिवसीय माघ-पुन्नी मेला लगता है। शिवरीनारायण के प्रसिध्द मंदिरों में नर-नारायण मंदिर, केशव नारायण मंदिर, चन्द्रचूड़ महादेव मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर और जगन्नाथ मंदिर शामिल है। इस वर्ष शिवरीनारायण् मेला 18 फरवरी से 2 मार्च तक चलेगा। जिला प्रशासन द्वारा मेले में आने वाले श्रध्दालुओं के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएं जुटाई जा रही है। मेला सुरक्षा समिति और मेला आयोजन समिति का गठन किया जा चुका है। महासमुंद जिले में महानदी के तट पर स्थित ऐतिहासिक और पुरातात्विक नगरी सिरपुर को वर्तमान छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। सिरपुर के ऐतिहासिक महत्व का परिचय शरभपुरीय शासक प्रवर राज तथा महासुदेव राज के ताम्रपत्र से मिलता है। सिरपुर में माघ-पूर्णिमा के अवसर पर 17 फरवरी से 19 फरवरी तक सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। सिरपुर महोत्सव के व्यवस्थित और सफलतापूर्वक आयोजन के लिए अलग-अलग समितियां गठित की गयी है। साफ-सफाई, विद्युत, पेयजल, सुरक्षा, यातायात, चिकित्सा आदि व्यवस्थाओं के लिए अलग-अलग समितियां गठित की गयी है।
महानदी, पैरी, सोढूर नदी के पावन संगम पर स्थित छत्तीसगढ़ के प्रयागराज के रूप में प्रसिध्द तीर्थ नगरी राजिम के ऐतिहासिक माघ-पुन्नी मेले की प्रसिध्दि पूरे देश में हैं। यहां हर वर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक एक पखवाड़े का मेला लगता है। इस पवित्र नगरी के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के मंदिरों में प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिल्प कला का अनोखा समन्वय नजर आता है। यहां के प्रमुख मंदिरों में आठवीं शताब्दी के राजीव लोचन मंदिर, नवमीं शताब्दी के कुलेश्वर महादेव मंदिर और 14वीं शताब्दी के भगवान रामचंद्र के मंदिर सहित जगन्नाथ मंदिर, भक्तमाता राजिम मंदिर और सोमेश्वर महादेव मंदिर श्रध्दालुओं के लिए आस्था और विश्वास का केन्द्र है। महाभारत, मत्स्य पुराण और ब्रम्ह पुराण जैसे पौराणिक ग्रंथों में महानदी को चित्रोत्पला के नाम से भी संबोधित किया गया है।
राज्य शासन के प्रयासों से परम्परागत राजिम मेले को एक नयी पहचान मिली है। छत्तीसगढ़ के प्रसिध्द राजिम मेले को राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2005 से भव्य स्वरूप में आयोजित करने का सिलसिला शुरू किया गया है। परम्परागत राजिम मेले को 'राजिम कुंभ' के रूप में आयोजित करने की परम्परा की शुरूआत के छठवें वर्ष में इस साल इसे और अधिक भव्य स्वरूप में आयोजित करने की तैयारी की गई है। इसके लिए राज्य शासन द्वारा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अध्यक्षता में केन्द्रीय समिति का गठन किया गया है। पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल को केन्द्रीय समिति का कार्यकारी अध्यक्ष तथा कृषि मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू को उपाध्यक्ष बनाया गया है। श्रध्दालुओं के लिए पेयजल, भोजन, चिकित्सा, सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए जा रहे हैं। मेला स्थल पर नदी में मुरम की आंतरिक सड़कों का निर्माण तेजी से चल रहा है। राजिम और नवापारा के सभी मंदिरों में रोशनी की व्यवस्था की जा रही है। मेले के दौरान आठ दिवसीय संत समागम का आयोजन भी किया जाएगा। त्रिवेणी संगम पर बने मुक्ताकाशी मंच पर राजीव लोचन महोत्सव का आयोजन होगा, जिसमें छत्तीसगढ़ की लोक कला की विविधता देखने को मिलेगी। राज्य शासन के विभिन्न विभागों द्वारा विकास प्रदर्शनी भी मेले के दौरान लगायी जाएगी।
राजिम के संगम स्थल पर नदी की रेत में 14 किलोमीटर आंतरिक सड़कें बनायी गयी है। इनमें से चार प्रमुख सड़कों की चौड़ाई 12 मीटर रखी गयी है। मेला स्थल पर शासकीय विभागों की विकास प्रदर्शनी के आयोजन की तैयारी चल रही है। श्रध्दालुओं के लिए पेयजल व्यवस्था करने 8 किलोमीटर पाईप लाईन बिछायी जा रही है। पेयजल की आपूर्ति करने 20 टंकियां स्थापित की जा रही है। सात नलकूप खनन किए किए गए हैं। संत समागम स्थल पर पेयजल और शौचालयों की व्यवस्था की गई है। मेला स्थल पर प्रकाश व्यवस्था करने दस ट्रांसफार्मर लगाए जा रहे हैं। राजिम-नयापारा के पास बने नए और पुराने दोनों पुलों में रौशनी की व्यवस्था की जा रही है। मेला स्थल पर 24 घंटे प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराने चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ तैनात किए जा रहे हैं। पांच एम्बुलेंस और दो संजीवनी आपात एम्बुलेंस की व्यवस्था भी कर ली गई है। श्रध्दालुओं को सस्ती दर पर भोजन उपलब्ध कराने 60 दाल-भात अन्नपूर्णा दाल-भात केन्द्र स्थापित किए जा रहे हैं।
प्रदेश के जांजगीर-चाम्पा जिले में महानदी, शिवनाथ और जोंक नदियों के संगम पर स्थित शिवरीनारायण प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिध्द है। यह पवित्र भूमि रामायणकालीन प्रसंगों से जुड़ी हुई है। शिवरीनारायण् में भी 15 दिवसीय माघ-पुन्नी मेला लगता है। शिवरीनारायण के प्रसिध्द मंदिरों में नर-नारायण मंदिर, केशव नारायण मंदिर, चन्द्रचूड़ महादेव मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर और जगन्नाथ मंदिर शामिल है। इस वर्ष शिवरीनारायण् मेला 18 फरवरी से 2 मार्च तक चलेगा। जिला प्रशासन द्वारा मेले में आने वाले श्रध्दालुओं के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएं जुटाई जा रही है। मेला सुरक्षा समिति और मेला आयोजन समिति का गठन किया जा चुका है। महासमुंद जिले में महानदी के तट पर स्थित ऐतिहासिक और पुरातात्विक नगरी सिरपुर को वर्तमान छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। सिरपुर के ऐतिहासिक महत्व का परिचय शरभपुरीय शासक प्रवर राज तथा महासुदेव राज के ताम्रपत्र से मिलता है। सिरपुर में माघ-पूर्णिमा के अवसर पर 17 फरवरी से 19 फरवरी तक सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। सिरपुर महोत्सव के व्यवस्थित और सफलतापूर्वक आयोजन के लिए अलग-अलग समितियां गठित की गयी है। साफ-सफाई, विद्युत, पेयजल, सुरक्षा, यातायात, चिकित्सा आदि व्यवस्थाओं के लिए अलग-अलग समितियां गठित की गयी है।
(जनसंपर्क छत्तीसगढ़)
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