मैंने अनुरोध किया तो कुमार अंबुज जी ने अपनी एक पुरानी कविता भेजी है। यह अब भी सामयिक है (अफसोस) ः-
तुम्हारी जाति क्या है कुमार अम्बुज/ तुम किस के हाथ का खाना खा सकते हो/और पी सकते हो किसके हाथ का पानी/चुनाव में देते हो किस समुदाय के आदमी को वोट/ऑफिस में किस जाति से पुकारते हैं लोग तुम्हें/और कहॉं ब्याही जाती हैं तुम्हारे घर की बहन बेटियॉं/ बताओ अपने धर्म और वंशावली के बारे में/किस धर्मस्थल पर करते हो तुम प्रार्थनाऍं/ तुम्हारी नहीं तो अपने पिता/अपने बच्चों की जाति बताओ/ बताओ कुमार अम्बुज/इस बार दंगों में रहोगे किस तरफ/और मारे जाओगे किसके हाथों।
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जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं