केवलकृष्ण
ढोलकाल
के शिखर पर गणपति मुस्कुरा रहे हैं। बादलों से लिपटी बैलाडीला की
पहाड़ियां उचक-उचक कर देख रही हैं। शंखनी-डंकनी मचल रही हैं। एक बार फिर
इतिहास करवट ले रहा है। साल-सागौन के जंगलों में पहाड़ी मैंना नया ककहरा
सीख रही है।
बीत गए वे दिन जब मुट्ठीभर अनाज के लिए मुंदहरे में आयती को
कोसों दूर बचेली-दंतेवाड़ा आना पड़ता था। मंगीबाई को बादलों की बाट जोहनी
पड़ती थी कि वे कब आएं और खेतों में बरसें। सोमली अब बैगा-गुनिया के ही
भरोसे नहीं रहती। बुदरू को अब बड़े अस्पताल जाते हुए अपनी जेब नहीं टटोलनी
पड़ती। रामलाल अब जानता है कि अपने बच्चे को पढ़ा-लिखा बड़ा आदमी बनाने का
उसका ख्वाब अब कैसे सच हो सकता है। दंतेवाड़ा बदल रहा है।
सहमे-सहमे लोगों के चेहरों पर तैरती मुस्कुराहटें, दहशतजदा आंखों में
जिंदगी की चमक, बारूद की बदबू में पसीने की खुशबू...। हरी-हरी पत्तियों के
पीछे झरने खिलखिला रहे हैं।
किसने सोचा था कि जिस इलाके में
नक्सलवादी स्कूलों को धमाकों से उड़ा रहे हों वहां के बच्चे किताब-कापियां
थामें आसमान छूने निकल पड़ेंगे। बड़े-बड़े शहरों के महंगे स्कूलों को
पछाड़ते हुए कवासी जोगी, कविता माड़वी जैसी बच्चियां सफलता के नये किस्से
गढ़ेंगी। किसने सोचा था कि अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में
इस इलाके के 12 बच्चे एक साथ चयनित हो सकते हैं। लेकिन यह हुआ। यह सफलता की
पहली किस्त है। दूसरी किस्त की प्रतिभाएं पोटा केबिनों में वर्जिश कर रही
हैं। स्कूलों को बारूदों से उड़ा देने की नक्सली नीति का जवाब पोटा-केबिन
दे रहे हैं। पक्की छत न सही, बांस-चटाई टीन-टप्पर ही सही। 12 पोटा केबिनों
में किल्लोल गूंज रहा है, 44 और कतार में हैं। एर्राबोर-बांगापाल-पाकेला का
हाथ थामे गादीरास-पालनार-तालनार नयी राह चल पड़े हैं। एक हाथ में कुदाल और
दूसरे में किताबे थामे समझ रहे हैं कि कंप्यूटर के भीतर भी उनके लिए कितना
सारा स्पेस है।
लोहा-टीन-कोरंडम से भरी-पूरी धरती में विकास का पहिया तेजी से घूम रहा
है। रोजगार ने नये साधन दरवाजे खोल रहे हैं। फैक्टरियां, परियोजनाएं
दरवाजे खटखटा रही हैं और दंतेवाड़ा स्वागत के लिए तैयार खड़ा है। एजुकेशन
सिटी का फूल हाथों में लिए। यहां पढ़कर बच्चे अपना कौशल तेज करेंगे। यहां
पालिटेक्निक कालेज भी होगा, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान भी, बालिकाओं के
लिए कस्तूरबा गांधी विद्यालय, छू लो आसमान योजना का कन्या परिसर, आदिमजाति
कल्याण विभाग का आश्रम, नक्सल हिंसा में अनाथ हुए बच्चों के लिए आस्था
गुरुकुल, दो आवासीय विद्यालय, राजीव गांधी शिक्षा मिशन के तहत बालिका
छात्रावास, आदर्श विद्यालय और क्रीड़ा परिसर.........यानी
कालेजों-स्कूलों-आश्रमों का शहर। और करीब चार हजार विद्यार्थी इस शहर के
नागरिक होंगे। दंतेवाड़ा-जिले के प्रवेश द्वार गीदम में यह अनोखा शहर आकार
ले रहा है।
दुनिया देख रही है कि दंतेवाड़ा में शिक्षा की सड़कों का जाल किस तरह
बिछता चला जा रहा है। डामर की सड़कों की धज्जियां उड़ाने वाले नक्सलवादी इन
सड़कों के आगे बेबस हैं। वे घने जंगलों में हथियारों और गोले बारूद की
फैक्टरियां लगा रहे हैं तो दूसरी ओर शोषण और अत्याचार को कुचलने सरकार
अक्षर बांट रही है। शोषकों-अत्याचारियों से निपटने के सही तरीके सिखा रही
है। निरक्षरता के अंधेरे रास्तों में दिये जला रही है। जिस दंतेवाड़ा की
तुलना पिछड़ेपन को लेकर हुआ करती थी वह अधोसंरचना की अपनी परिकल्पना को
लेकर विश्वभर में चर्चित है। प्रतिष्ठित ग्लोबल एडवाइजरी फर्म केपीएमजी ने
एजुकेशन सिटी को दुनिया की 100 ऐसी अधोसंरचनाओं में शामिल किया है, जो
अद्भुत हैं। अभिनव हैं।
दंतेवाड़ा में शिक्षा की सड़क पर ही खुशहाली फर्राटे भरेगी। यहां की
एक-एक ईकाई को शिक्षित और हुनरमंद बनाने की कोशिशों के परिणाम अब सतह पर
हैं। यहां का गुजर-बसर कालेज अनोखा है। यह ऐसा कालेज है जो शिक्षितों के
लिए भी है और अशिक्षितों के लिए भी। यहां सिखाया जाता है कि अपने हुनर से
रोटी कैसे कमाई जा सकती है। नक्सल इलाके के बेरोजगार युवकों के लिए चमकते
भविष्य की उम्मीदों का सूर्य बनकर दमक रहा है यह कालेज।
इन खास योजनाओं के अलावा इलाके में शिक्षा के लिए वे तमाम योजनाएं भी
संचालित हैं जो प्रदेश सरकार राज्यभर में चला रही है। वे तमाम सुविधाएं भी
मुहैया करा रही हैं जो राज्यभर के छात्रों को मिल रही हैं। छात्रवृत्ति से
लेकर साइकिल तक और छात्रावासों से लेकर कापी-किताबों तक वितरण बच्चों के
बीच हो रहा है।
दुनिया देख रही है कि नक्सलवादियों की जड़ें पहचान लेने के बाद अब
उसकी सफाई कैसे की जा रही है। भूख, गरीबी, अशिक्षा और अंधविश्वास को कैसे
कुचला जा रहा है। भूख मिटाने यहां मुख्यमंत्री खाद्यान्न सहायता योजना के
तहत कुल 65 हजार 509 राशन कार्ड जारी किए गए हैं। 131 उचित मूल्य की
दुकानों में राशन सामग्री का भंडारण समय पर कर दिया जाता है। 36 ग्राम
पंचायतों में ग्रेन बैंक स्थापित किए गए हैं। 11 धान खरीदी केंद्रों के
माध्यम से किसानों से समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी की जा रही है। धान
खरीदी के मामले में दंतेवाड़ा न केवल लक्ष्य भेद रहा बल्कि नये कीर्तिमान
भी स्थापित कर रहा है। वर्ष 2012-13 में लक्ष्य रखा गया था 10 हजार मिट्रिक
टन धान की खरीदी का, जबकि खरीदी हुई 62 हजार 610 मेट्रिक टन। लक्ष्य से कई
गुना ज्यादा। जिले में भी गरीबों और जरूरतमंदों को एक और दो रुपए किलो में
चावल और 13 रुपए किलो शक्कर मिल रहा है। यानी भूख के मोर्चे पर फतह।
स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भी इस जिले ने तरक्की की। अंधविश्वास
छंटा तो लोग बैगा-गुनियाओं के चक्कर से मुक्त हुए। साल 2005-06 में जहां
इस जिले में 16 डाक्टर थे, वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 23 हो गई है। सरकार
ने 23 ग्रामीण चिकित्सा सहायकों की नियुक्ति डाक्टरों की कमी को पूरा करने
के लिए की है। चरकदूत सेवा के जरिए बीहड़ और दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य
सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं। 10 ग्रामीण चिकित्सा सहायकों को मोटरसाइकिलें
और स्वास्थ्य केंद्रों को मिनी एंबुलेंस प्रदाय किए गए हैं। 20 हजार 48
परिवारों का स्मार्ट कार्ड बनाया गया है। इनमें से 1240 लोगों ने इन
कार्डों के जरिए निशुल्क इलाज कराया। आपात स्थिति से निपटने के लिए
दंतेवाड़ा जिले में भी 108 संजीवनी एक्सप्रेस योजना शुरू की गई है।
दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोगों के इलाज के लिए मोबाइल मेडिकल
यूनिटें शुरू की गई हैं।
सिंचाई सुविधाओं के मामले में भी दंतेवाड़ा में अच्छी प्रगति हुई है।
यहां कई सिंचाई परियोजनाएं स्थापित हुई हैं और कई पर काम चल रहा है। पिछले
आठ सालों में खेती के रकबे में भी खासा इजाफा हुआ है। यह 90.691 हजार
हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख एक हजार हेक्टेयर हो चुका है। अब यहां के किसान
भूमि समतलीकरण कर रहे हैं, आदर्श कृषि फर्मों की स्थापना कर रहे हैं, कुएं
खुदवा रहे हैं, नलकूप स्थापित करा रहे हैं, पंप लगवा रहे हैं और अपने खेतों
तक बिजली के खंबे गड़ा रहे हैं। मुर्गीपालन के आधुनिक तरीके और पशुपालन
में मुनाफे का सही गणित उन्होंने सीख लिया है।
....यानी माई दंतेश्वरी का आशीष बरस रहा है। लाल नदी का पानी
आहिस्ता-आहिस्ता दुधिया हो रहा है। ढोलकाल के शिखर पर गणपति मुस्कुरा रहे
हैं।