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बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

फलक पर बद्दुआएं

मेरे घर की देहरी लांघ रहे थे तो मैंने अभिवादन किया। वे मुझसे ही मिलने आ रहे थे, लेकिन ताज्जुब उनका ध्यान मेरी ओर बिलकुल नहीं था। मेरे अभिवादन की ओर भी नहीं। मेरे नमस्कार को दरकिनार करते वे सीधे जमीन पर झुके और कुछ बिन लिया। जब सीधे हुए तो उनके हाथ में फुलझड़ियां थीं-उन्होंने कहा, ये जलीं नहीं हैं। कितने ही बच्चे इन फुलझड़ियों के मोहताज हैं। इन्हें रख दीजिए, कभी काम आएंगी।
आरीफ जमाली
इस बेहद संवेदनशील आदमी से यह मेरा पहला परिचय था। बिना नाम और बिना काम का परिचय। बाद में पता चला कि वे आरीफ भाई है, नागपुर में रहते हैं। कामठी में जुलाहे हैं और शायरी करते हैं। लिखने-पढ़ने वालों को यहां-वहां सूंघते फिरते हैं। मेरे मोहल्ले में आलोक सातपुते जी के मेहमान बने तो मेरे घर भी उनका आना हुआ। उनकी कुछ गजलें सुनने को मिलीं। इन गजलों ने मुझे भीतर तक छू लिया। आरीफ जमाली साहब से मैंने निवेदन कर इस ब्लाग के लिए कुछ गजलें मांग लीं। पेश हैं-

बोलती हैं

खमोशी की सदाएं बोलती हैं
मैं चुप हूं पर वफाएं बोलती हैं

यतीमी का मुझे ताना न दीजै
अभी मां की दुआएं बोलती हैं

नहीं कद्रदाने फन हमारा 
अजंता की गुफाएं बोलती हैं

बरहना तन हैं जो उनकी खबर लो
मजारों की रिदाएं बोलती हैं

तुम ही हो अपनी बहनों का सहारा
यहां बेटों से मांएं बोलती हैं

अगर मुफलिस हो मत बीमार होना
यहां महंगी दवाएं बोलती हैं

जमीं जब जुल्म से भर जाए आरीफ
फलक पर बद्दुआएं बोलती हैं


गजल-2

फकीरे

हाथ में है किशकोल फकीरे
बोल तू मीठे बोल फकीरे

मंजिल तुझको पाना है तो
बिस्तर को मत खोल फकीरे

बेटी चलती है रस्सी पर 
बाप बजाए ढोल फकीरे

दिल कोई बाजार नहीं है
प्यार को नाप न तोल फकीरे

कम कीमत है आज वफा की
ये शै थी अनमोल फकीरे

बारूदी हैं आज फजाएं
जग जाएगा डोल फकीरे

हमराही बेचैन हैं आरीफ
कानों में रस घोल फकीरे


किशकोल-दानपात्र


आरीफ जमाली जी का पताः-
डा.शेख बुनकर कालोनी
पोस्ट कामटी
441002, जिला नागपुर (महाराष्ट्र)
इंडिया
मोबाइल-86 98 84 90 22