tag:blogger.com,1999:blog-4905193278739708115.post1615949497146155614..comments2023-09-25T02:49:44.752-07:00Comments on जरा इधर भी: रिसते रिश्तेAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/10097444135773054085noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-4905193278739708115.post-47992511339790666812010-11-16T22:00:55.562-08:002010-11-16T22:00:55.562-08:00शायद अब ये सोचने का वक्त निकला जा रहा है हमने लिखन...शायद अब ये सोचने का वक्त निकला जा रहा है हमने लिखने के नाम पर इतना मसला कहानियों मे भर दिया है कि सब कुछ सच नज़र आता है\ जबकि हकीकत मे ऐसा होता नही। रिश्तों मे छेद कर के उनमे से मवाद ही निकलेगा। साहित्य से जब जीवन दर्शन का क्षरण होने लगे तो यही होगा। हम और आप केवल सोचते रहेंगे। धन्यवाद।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.com