बुधवार, 29 सितंबर 2010

दंगों में

मैंने अनुरोध किया तो कुमार अंबुज जी ने अपनी एक पुरानी कविता भेजी है। यह अब भी सामयिक है (अफसोस) ः-
तुम्‍हारी जाति क्‍या है कुमार अम्‍बुज/ तुम किस के हाथ का खाना खा सकते हो/और पी सकते हो किसके हाथ का पानी/चुनाव में देते हो किस समुदाय के आदमी को वोट/ऑफिस में किस जाति से पुकारते हैं लोग तुम्‍हें/और कहॉं ब्‍याही जाती हैं तुम्‍हारे घर की बहन बेटियॉं/ बताओ अपने धर्म और वंशावली के बारे में/किस धर्मस्‍थल पर करते हो तुम प्रार्थनाऍं/ तुम्‍हारी नहीं तो अपने पिता/अपने बच्‍चों की जाति बताओ/ बताओ कुमार अम्‍बुज/इस बार दंगों में रहोगे किस तरफ/और मारे जाओगे किसके हाथों।

बुधवार, 1 सितंबर 2010

शर्म मगर आती नहीं

 देश में हजारों टन अनाज सड़ने और शरद पवार को सुप्रीम कोर्ट की बत्ती के बीच एक खबर यह भी :-
बांदा- उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद के एक गांव में महिलाओं ने अनूठी पहल की है। भुखमरी से निपटने के लिए महिलाओं ने ‘अनाज बैंक’ की स्थापना की है। इसके जरिए जरुरतमंदों के बीच अनाज बांटा जा रहा है।
ग्रामीण महिलाओं ने अब तक इस अनाज बैंक में एक क्विंटल अनाज इकट्ठा कर लिया है। प्रोत्साहन स्वरूप दिल्ली की संस्था एक्शन एड ने दो क्विंटल अनाज दिया है। यह अनूठी पहल महोबा जनपद के चरखारी तहसील के अंर्तगत चंदौली गांव की महिला पान कुंवरि की अगुवाई में की गई है। गांव की पांच महिलाओं ने एक समूह बना कर ग्राम आपदा कोष की तर्ज पर अनाज बैंक की स्थापना की है। शुरुआत में तो इस मुहिम में पांच महिलाएं थीं, पर इनकी संख्या बढ़कर 10 तक पहुंच गई है।
पानकुंवरि ने बताया कि सम्पन्न व धनाढ्य वर्ग के लोगों से अनाज इकट्ठा कर बुंदेलखंड क्षेत्र में गरीबी व भुखमरी से जूझ रहे बेहाल परिवारों को अनाज मुहैया कराया जाएगा। महिलाओं की यह पहल बुंदेलखंड में चर्चा का विषय बनी हुई है।
माना जा रहा है कि इस पहल से साहूकरों व महाजनों के शोषण से लोगों को मुक्ति मिलेगी। चंदौली गांव में 2100 लोग निवास करते है। इनमें से 663 लोग अनुसूचित जाति के हैं। इस गांव का दैवीय आपदा व सूखे से पांच वर्षो से गहरा नाता है। ज्यादातर मेहनतकश मजदूर गांव से बड़े शहरों को पलायन कर गए है। इस गांव के लोग दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज है। हालात भांप कर गांव के साहूकार मजबूर लोगों को डेढ़ और दोगुने की सवाई पर अनाज उधार देते है।
http://www.growthindia.org/?p=2308 (साभार)